Delhi

नई डिग्री लेने वाले छात्र सीधे न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल नहीं हो सकते, 3 साल का कानूनी अभ्यास अनिवार्य

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सिविल जज कैडर में प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि नई डिग्री लेने वाले छात्र सीधे न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल नहीं हो सकते। उनके लिए कम से कम 3 साल का कानूनी अभ्यास अनिवार्य होगा। इस फैसले से न्यायिक भर्ती प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आएगा और यह देशभर के हजारों लॉ ग्रेजुएट्स को प्रभावित करेगा।इससे पहले सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने उन आठ मुद्दों पर बात की थी जिन पर विचार किया गया। उन्होंने बताया कि हाई कोर्ट के हलफनामों से यह सामने आया है कि नए विधि स्नातकों की नियुक्ति से कई समस्याएं पैदा हुई हैं। न्यायाधीशों को नौकरी मिलने के पहले दिन से ही जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति जैसे महत्वपूर्ण मामलों से संबंधित स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इसका समाधान केवल किताबों के ज्ञान से नहीं, बल्कि वरिष्ठों के सहयोग से, न्यायालय की कार्यप्रणाली को समझकर ही किया जा सकता हैं

सीजेआई ने कहा कि “हम सभी हाई कोर्ट के साथ इस बात पर सहमत हैं कि न्यूनतम प्रैक्टिस की आवश्यकता है।” उन्होंने आगे कहा कि “हम मानते हैं कि परीक्षा से पहले कुछ सेवाओं को फिर से शुरू करना आवश्यक है।”सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, अनुभव की गणना अंतिम पंजीकरण होने के समय से की जाएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन अलग-अलग समय पर आयोजित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, 10 साल का अनुभव रखने वाले वकील को यह प्रमाणित करना होगा कि उम्मीदवार ने न्यूनतम आवश्यक अवधि की प्रैक्टिस पूरी की है।

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