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मध्य प्रदेश के बिजली घरों को एफजीडी से छूट, बढ़ेगा प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिम

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मध्य प्रदेश के कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट्स को फ्ल्यू गैस डीसल्फराइजेशन (एफजीडी) तकनीक से छूट देने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिम बढ़ने की आशंका बढ़ गयी है। जुलाई 2025 की अधिसूचना के तहत पर्यावरण मंत्रालय ने 2015 में तय किये गए उत्सर्जन मानकों में ढील देते हुए कैटेगरी ‘सी’ के सभी प्लांट्स को अब एफजीडी लगाने से मुक्त कर दिया है।
राज्य में कुल 48 थर्मल पावर यूनिट्स हैं, जिनकी क्षमता 21,910 मेगावॉट है। ये सभी ‘कैटेगरी सी’ में आती हैं, यानी अब 100% क्षमता सल्फर डाइऑक्साइड नियंत्रण के बिना चल सकेगी। फिलहाल केवल छह यूनिट्स-दो निजी और चार केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली-एफजीडी सिस्टम से लैस हैं, जबकि राज्य सरकार के किसी भी प्लांट में यह तकनीक लागू नहीं है।
एफजीडी तकनीक सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), पीएम2.5 और पारे जैसी जहरीली गैसों को कम करने के साथ-साथ सीमेंट उद्योग के लिए उपयोगी सिंथेटिक जिप्सम भी तैयार करती है। भारत पहले से ही दुनिया में सल्फर डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा उत्सर्जक है और वैश्विक मानवजनित उत्सर्जन में उसका योगदान 20% है। इसमें से 60% उत्सर्जन कोयला आधारित बिजली घरों से होता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक यह छूट जबलपुर, सागर, देवास, उज्जैन, इंदौर, भोपाल और ग्वालियर जैसे औद्योगिक और कोयला क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता को और खराब कर सकती है। एफजीडी की बाध्यता खत्म होने के बाद राज्य के शहरों में पीएम2.5 स्तर कम करने के राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल करना अब और मुश्किल होगा।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (क्रेया) के विश्लेषक मनोज कुमार बताते हैं कि एफजीडी से सल्फर डाइऑक्साइड और पारे के उत्सर्जन में कमी के साथ-साथ सीमेंट उद्योग को जिप्सम की आपूर्ति भी होती है। लेकिन छूट देने से न केवल वायु प्रदूषण और असमय मौतों का खतरा बढ़ेगा, बल्कि परिपत्र अर्थव्यवस्था और स्वच्छ वायु लक्ष्यों की दिशा में प्रगति भी रुक जाएगी।

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