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युग प्रवर्तक थे आचार्य यशोभद्र सूरी म.सा. – डा. भंडारी

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जैन आचार्य विजय यशोभद्र सुरीश्वर म.सा. की पुण्यतिथि पर स्काउट ग्राउंड में आयोजित विराट गुणानुवाद सभा में उनके वरिष्ठ शिष्य आचार्य पीयूषभद्र सूरीश्वर म.सा. ने गुरुदेव आचार्यश्री के प्रभावी जीवन प्रसंगों का उल्लेख किया और उनके द्वारा की गई धर्म प्रभावना के बहुआयामी पहलुओं और आचार शुद्धता के लिए उनके अति विशिष्ट योगदान को रेखांकित किया।
इस सभा में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए शिक्षाविद एवं अर्थशास्त्री डॉ. जयंतीलाल भंडारी ने कहा कि यशोभद्र सूरिश्वरजी युग प्रवर्तक आचार्य थे।उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में दीक्षा ली और 79 वर्ष के संयम चारित्र्य जीवन में जैन धर्म और जैन दर्शन के लिए अभूतपूर्व योगदान के नए-नए अध्याय लिख दिए। आचार्यश्री को 14 प्रभावी दीक्षाओं, 21 अंजन शलाकाओं की प्रतिष्ठाओं, मंदिरों के जीर्णोद्धार और नए तीर्थों के निर्माण करने वाले आचार्य के रूप में जाना जाता है। आचार्यश्री कठोर तपस्वी एवं समन्वयवादी थे। यशोभद्र सुरेश्वर ने इन्दौर में चार प्रभावी चातुर्मास किए थे।146 वर्ष प्राचीन इंदौर के सबसे प्रथम श्वेतांबर जैन लाल मंदिर, पीपली बाजार के जीर्णोद्धार में उनका विशेष योगदान रहा। उन्होंने देश के कोने-कोने में चातुर्मास किए और खासतौर से बिहार और कोलकाता में ऐसे स्थानों में चातुर्मास किए, जहां जैन संतों का जाना मुश्किल हुआ करता था। उन्होंने देश में 80 हजार किलोमीटर से अधिक विचरण करते हुए चारों ओर अहिंसा, तपस्या और भगवान महावीर के उपदेशों की पताका को फहराते हुए जैन धर्म को जनधर्म बनाने में अहम भूमिका निभाई।
इस मौके पर मुनि प्रवर कीर्तनयशविजय, कल्याणभद्र विजय, हेमयश विजय, प्रकाश भंडारी, पारसमल बोहरा, महेश भाई शाह, प्रमोद चोरडिया तथा तोपखाना गुजराती जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के ट्रस्टियों सहित मंदसौर और मुंबई से आए गुरु भक्तों ने गुरुदेव का गुणानुवाद किया। कार्यक्रम का संचालन शेखर गिलड़ा ने किया। उल्लेखनीय है कि गुणानुवाद सभा में इंदौर की जैन पाठशालाओं के गुरुजनों का बहुमान भी किया गया।

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