दिगंबराचार्य विमर्श सागर को डी. लिट. की उपाधि से अलंकृत किया
मनोज जैन नायक
थेम्स युनीवर्सटी फ्रांस द्वारा डी.लिट. की उपाधि एवम ग्लोबल भक्तामर ग्रुप द्वारा साहित्य मनीषी अलंकरण से आचार्य श्री विमर्श सागर जी महाराज को अलंकृत किया गया ।
पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री के परम भक्त आगरा निवासी विश्वनाथ जैन कोटिया द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार श्रुत पंचमी महापर्व के पावन अवसर पर अतिशय क्षेत्र तिजारा जी में भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्श सागर महा मुनिराज को थेम्स यूनिवर्सटी फ्रांस द्वारा आचार्य श्री की अभूतपूर्व मौलिक नवीन भाषा विमर्श एम्बिसा कृति पर डी.लिट. की उपाधि समर्पित कर अपना सौभाग्य वर्धन किया एवम ग्लोबल भक्तामर ग्रुप द्वारा गुरुदेव के अनुपमेय कृतित्व को लक्ष्य कर आचार्य श्री को साहित्य मनीषी अलंकरण से अलंकृत किया गया ।
श्रुत पंचमी महापर्व के पावन अवसर पर अतिशय क्षेत्र तिजारा जी में आचार्य श्री विमर्श सागर जी महा मुनिराज के ससंघ सान्निध्य में मां जिनवाणी एवम पूज्य गुरुदेव की आराधना की गई । आराधना के उपरांत देशभर से पधारे विद्वत वर्ग के द्वारा पूज्य आचार्य श्री को डी.लिट. की उपाधि एवम् साहित्य मनीषी अलंकरण समर्पित किए गए । अलंकरण समर्पण की श्रखंला में मुख्य अथिति के रूप में डॉ. अजीत शास्त्री रायपुर, संजय जी पंजाब, डॉ. नीरू जैन पंजाब, विभोर जैन जायना एंडस्ट्रीज, डॉ. सरिता जैन चैन्नई, डॉ. राशु जैन देहरादून, मयंक जैन, मनोज जैन एवम ऋतु जैन आदि विद्वतवर्ग उपस्थित थे ।
इतिहास में प्रथमवार किसी संत ने यह अद्भुत, अभूतपूर्व, महनीय कार्य किया है । आज तक किसी भी भाषा का किसी भी व्यक्ति ने सृजन नहीं किया, बोलचाल के प्रचलन में आकर स्वमेव ही भाषा अपना रूप ले लेती है । भावलींगी संत आचार्य विमर्श सागर महाराज ऐसे प्रथम दिगंबर आचार्य हैं, जिन्होंने स्वयं ही मौलिक रूप से पूर्णतः नवीन भाषा विमर्श एम्बिसा लिखकर समस्त साहित्य मनीषियों को आश्चर्य चकित कर दिया । इस भाषा का संपूर्ण व्याकरण, शब्द, क्रिया, वाक्य आदि नवीन रूप से रचित हैं । इसी तरह ब्रहमी लिपि, देवनागरी, तेलगु आदि लिपियों की भांति आचार्य श्री ने दान 2011 में पूर्णतः नवीन विमर्श लिपि का भी सृजनकर एक नई चेतना जागृत की है ।