चरम पर है तृणमूल कांग्रेस की तुष्टिकरण नीति
डॉ हरिकृष्ण बड़ोदिया
यह कोई पहला मौका नहीं है जब पश्चिम बंगाल में हिंसा हो रही है। आजादी के बाद दो दशकों तक राज्य में कांग्रेस की सरकार रही तब भी पश्चिम बंगाल में हिंसक घटनाएं होती थीं। सच तो यह है कि राज्य हिंसक घटनाओं से मुक्त कभी रहा ही नहीं।1967 में राज्य में नक्सलबाड़ी विद्रोह हुआ जो कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए कट्टरपंथी कम्युनिस्टों द्वारा किया गया था जिसमें दंगाइयों ने हिंसा फैलाई और पुलिस की दमनकारी नीति के कारण कई लोगों की जानें गई थी। तीन दशक तक पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादियों का शासन रहा जिसने अपनी सत्ता पर मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए खूनी संघर्ष करवाए। मार्क्सवादियों ने राजनीतिक हिंसा की संस्कृति को स्थाई रूप देने का काम किया। मार्क्सवादियों ने भी कांग्रेस की तरह ही सत्ता को बचाए रखने के लिए हिंसा से परहेज नहीं किया। इस सत्तारूढ़ सरकार ने हालांकि राज्य के नागरिकों के कल्याण के लिए कुछ कदम उठाए लेकिन कांग्रेस की तुलना में और अधिक संगठित तरीकों से विरोधियों को कुचलने का काम किया। 2011 में ममता बनर्जी ने मार्क्सवादियों के शासन को उखाड़ फेंकने में कामयाबी पाई लेकिन पैटर्न वही हिंसा का रहा। जिस तरह मार्क्सवादी सत्ता में बने रहने के लिए खूनी हिंसा का सहारा लिया करते थे तृणमूल कांग्रेस ने भी उसी रास्ते को अपनाया। ममता सरकार पिछले 15 सालों से सत्ता पर काबिज है और हिंसा भी बदस्तूर जारी है। वस्तुत: ज्योति बसु शासन और ममता शासन के बीच हिंसा की राजनीति एक कॉमन फैक्ट है। हिंसा का सबसे नंगा नाच यहां अक्सर चुनावों के दौरान देखने को मिलता है। चाहे लोकसभा के चुनाव हों या विधानसभा के हों या पंचायत के ऐसा कोई चुनाव नहीं जाता जिसमें घटने वाली हिंसक घटनाओं में निर्दोष लोगों को मौत के घाट ना उतारा जाता हो। 2011 के विधानसभा चुनाव के बाद के 10 महीनों में ही 50 मार्क्सवादी कार्यकर्ताओं की हत्या हुई जिनका आरोप ममता सरकार पर है। 2018 के पंचायत चुनाव में 10 लोगों की हत्या हुई। बूथ कैप्चरिंग, मतपेटियों की लूट और मत पत्रों को जलाने जैसी गतिविधियां देखी गईं। 2019 में लोकसभा चुनाव में भी खूनी संघर्ष हुआ। भाजपा का प्रदर्शन इतना अच्छा हुआ कि उसने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में 18 सीटें हासिल कर लीं जबकि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटों में संतोष करना पड़ा। इस वर्ष राज्य में 12 हिंसक घटनाएं हुई जिनमें गृहमंत्री अमित शाह ने 130 से अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की बात की। 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा में 10 से अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई। तृणमूल का दावा रहा कि उसके तीन कार्यकर्ता मारे गए। पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य में घटित अनेक हिंसक घटनाओं, बलात्कार की घटनाओं और भ्रष्टाचार के मामलों के कारण तृणमूल कांग्रेस का ग्राफ तेजी से गिर रहा है जिसकी वजह से उसके कार्यकर्ता और सत्ताधारी नेतृत्व खासे परेशान हैं जिसकी परिणिति लगातार हिंसक घटनाओं के रूप में दिखाई दे रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की शक्ति में गिरावट हुई और उसे 42 में से मात्र 12 सीटों पर जीत मिली जब कि टीएमसी को 29 और कांग्रेस को मात्र एक सीट मिली। इस प्रदर्शन से ममता बनर्जी दोबारा राज्य में मजबूत स्थिति में आ गईं। इस जीत का महत्वपूर्ण कारण यह रहा कि मुसलमान वोटरों ने एकजुट होकर हर लोकसभा सीट पर ममता के पक्ष में मतदान किया जिससे मुस्लिम वोटों में बिखराव नहीं हुआ जबकि हिंदू वोटों का उस तरह ध्रुवीकरण नहीं हुआ जैसा 2019 के चुनाव में हुआ था। जो भी हो इस जीत के साथ ममता बनर्जी का मुस्लिम तुष्टिकरण चरम पर पहुंच गया क्योंकि राज्य की कुल जनसंख्या में लगभग 30 प्रतिशत मुसलमान हैं जो भाजपा के विरुद्ध मतदान कर ममता की जीत की इबारत लिखने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वहीं हिंदू वोटों का बिखराव भी ममता को जीत में मदद करता है। अभी देश में हिंदू और हिंदुत्व की विचारधारा की लहर जैसी चल रही है इससे ममता विचलित दिखाई दे रही हैं। ऐसे में उन्हें अपनी जीत का एकमात्र रास्ता मुस्लिम तुष्टिकरण ही दिखाई दे रहा है। संयोगवश वक्फ संशोधन कानून ने उनके तुष्टीकरण को चरम पर पहुंचाने का रास्ता आसान कर दिया जिसकी वजह से देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में पश्चिम बंगाल में मुसलमान अधिक हिंसक तरीके से वक्फ संशोधन कानून का विरोध करते दिखाई दे रहे हैं। आज की स्थिति में हिंदुओं के खिलाफ खूनी जंग का पैटर्न ठीक बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसा की तरह ही देखा जा रहा है जिसका केंद्र वर्तमान में मुर्शिदाबाद बना हुआ है। माना जा रहा है कि मुर्शिदाबाद में होने वाली हिंसक घटनाओं में बांग्लादेशी आतंकवादी संगठन हिजबुल तहरीरी का हाथ है। रामनवमी हो या हनुमान जयंती या नवरात्रि ऐसा कोई हिंदू त्यौहार नहीं जिस पर राज्य में मुसलमानों का तीखा विरोध देखने को नहीं मिलता हो। खेदजनक यह है कि ममता बनर्जी बहुसंख्य हिंदुओं की अनदेखी कर दृढ़ता से मुसलमानों के पक्ष में खड़ी नजर आती हैं। ज्यादातर हिंदू त्योहारों पर जुलूस निकालने के लिए हिंदुओं को कोर्ट का सहारा लेना पड़ता है। यही नहीं ममता के विरोध की इंतहा तो तब भी देखने मिलती है जब वे अपनी प्रतिद्वंद्वी पार्टी को आम सभाओं के लिए भी अनुमति नहीं देती जिसके लिए भी भाजपा को कोर्ट का सहारा लेना पड़ता है। जब से संसद में वक्फ संशोधन कानून बना है तब से ही मुर्शिदाबाद जल रहा है। 2011 की जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार मुर्शिदाबाद में 65.7 प्रतिशत मुसलमान हैं और 33.6 प्रतिशत के लगभग हिंदू हैं। यहां हिंदू स्वयं को न केवल असुरक्षित महसूस करते हैं बल्कि उन्हें अपनी जान माल की सुरक्षा की चिंता हमेशा बनी रहती है। हिंसक घटनाओं को देखते हुए यहां एक बात बिल्कुल सही प्रतीत होती है कि जिस क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी अधिक है वहां हिंदू कतई सुरक्षित नहीं माने जा सकते। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान का ओवैसी सहित कई मुसलमान नेताओं ने कड़ा विरोध किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि किसी जगह 100 हिंदुओं के परिवारों के बीच एक मुसलमान परिवार रह रहा है तो वह पूरी तरह से सुरक्षित है किंतु 100 मुस्लिम परिवारों के बीच एक हिंदू परिवार तो छोड़िए 50 हिंदू परिवार भी स्वयं को सुरक्षित नहीं महसूस करते। इसके समर्थन में उन्होंने पाकिस्तान में हिंदू आबादी के घटने और बांग्लादेश में हिंदुओं के विरुद्ध घटित कुछ महीने पहले के कत्लेआम की घटनाओं का उदाहरण दिया। यह कथन मुर्शिदाबाद में सत्य होता दिखाई दे रहा है। मुसलमानों के आक्रामक और हिंसक प्रदर्शन और हिन्दू देवी देवताओं के मूर्तिकार पिता पुत्र तथा एक अन्य की हत्या से वहां रहने वाले हिंदू इतने डर गए कि लगभग 500 हिंदू परिवार नदी के रास्ते मालदा पहुंचकर स्कूलों में शरण लेने को मजबूर हुए। पलायन करने वाले हिंदुओं का कहना है कि उनके घरों में आग लगाई गई, पीने के पानी में जहर मिलाया गया और महिलाओं के साथ बदसलूकी की गई इसलिए अपने परिवार की जान बचाने उन्हें
मुर्शिदाबाद छोड़ना पड़ा। सच्चाई तो यह है कि पश्चिम बंगाल के मुसलमान जहां एक ओर बांग्लादेश में हिंदू विरोधी मानसिकता से प्रभावित है वहीं ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की नीति के चलते बहुत आक्रामक होकर खून खराबा करते देखे जा सकते हैं। चुनाव आते-आते पता नहीं कितने हिंदुओं को मौत के घाट उतारा जाएगा। अगर हिंसक घटनाएं ऐसी ही घटती रहीं तो कोई आश्चर्य नहीं कि पश्चिम बंगाल में भाजपा तृणमूल कांग्रेस को पटखनी देकर सत्ता में आ जाए। अगर ऐसा होता है तो यह मानने में कोई संशय नहीं रहेगा कि ममता बनर्जी ने स्वयं अपनी पराजय की पटकथा लिखी। पूरे देश में वक्फ संशोधन कानून के विरोध में जिस तीव्र गति से कट्टरपंथी मुस्लिम तबका संगठित हो रहा है ठीक उसके विरोध में हिंदुओं का ध्रुवीकरण भी उतनी ही तीव्र गति से हो रहा है। जिसका असर आगामी बिहार विधानसभा और पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में देखने को मिले तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
