यातायात नियम पुलिस और जुर्माने के डर से नहीं बल्कि अपने परिवार की खुशियों के लिए अपनाना चाहिए
राजकुमार जैन, यातायात प्रबंधन मित्र
“अगर अपनी संतानों को आज नहीं दिए यातायात नियम पालन के संस्कार, तो कल करना पड़ सकता है उनका अंतिम संस्कार।” यह कथन सुनने में थोड़ा कठोर लग सकता है, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए यह एक कड़वा सच है।
इंदौर शहर की सड़कों पर बढ़ते हादसों में लाल बत्ती उल्लंघन और रॉन्ग साइड जाने की प्रवृत्ति प्रमुख भूमिका अदा करती है जो किसी से छिपी नहीं है। हम इन्दौर वाले इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते हैं, और यही चिंता का सबसे बड़ा विषय है।
यातायात पुलिस द्वारा जारी हाल ही में जारी आँकड़े बताते हैं कि मार्च 2025 के अंतिम सप्ताह में सिर्फ चार चौराहों पर 263 वाहन चालक लाल बत्ती में अपने वाहन घुसाते हुए पकड़े गए है, पूरे शहर में की बात करें तो यह संख्या हजारों में हो सकती है।
लाल बत्ती उल्लंघन, एक जानलेवा जल्दबाजी है। हर दिन हम सड़कों पर यह दृश्य सरे आम देखते हैं कि लाल बत्ती चमक रही होती है, लेकिन कुछ लोग जल्दबाजी में उसे नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाते हैं। चंद सेकंड बचाने की चाहत में वे न केवल अपनी, बल्कि दूसरों की जान को भी खतरे में डालते हैं। अपने वाहन को लहराते हुए सामने से आ रहे वाहनों से बचते हुए, हॉर्न की तेज आवाजों के बीच, वे लाल बत्ती को धता बताकर विजयी भाव के साथ दौड़ लगाते हैं। लेकिन क्या वास्तव में यह जीत है, नहीं, यह तो एक ऐसी दौड़ है जिसमें हारने वाला वो स्वयं ही नहीं, बल्कि उसका पूरा परिवार और समाज भी हारता है।
देखा जाय तो ये कोई अलग किस्म के लोग नहीं हैं, बल्कि ये तो हमारे-आपके जैसे ही आम जन होते हैं। ये वही लोग हैं जो सड़क पर अपनी गाड़ी को इस तरह तेजी से भगाते हैं, मानो समय उनके हाथों में हो। लेकिन जब दुर्घटना घट चुकी होती है, तो ये वही लोग होते हैं जो इसके खर्च को उठाने में असमर्थ होते हैं। एक छोटी सी गलती उनके परिवार को भावनात्मक और आर्थिक रूप से बर्बाद कर देती है। लेकिन विडंबना यह है कि रोजाना हो रही दुर्घटना मृत्यु की बढ़ती तादाद के बावजूद, हम सबक लेने को तैयार नहीं। आखिर कब तक हम अपनी आंखें बंद रखेंगे?
बढ़ते वाहनों के साथ सड़क हादसों की संख्या भी हर साल बढ़ती जा रही है। भारत में हर दिन सैकड़ों लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाते हैं। आंकड़े गवाह हैं कि नियमों की अनदेखी के कारण बड़ी संख्या में घातक हादसे होते हैं।
यातायात नियम उल्लंघन न केवल ट्रैफिक व्यवस्था को बिगाड़ता है, बल्कि यह सीधे तौर पर जानलेवा साबित होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि भारत में सड़क हादसों से होने वाली मौतों का एक बड़ा हिस्सा शहरी क्षेत्रों में होता है, जहां ट्रैफिक सिग्नल की अवहेलना आम बात है। यह एक ऐसी महामारी है जिसका इलाज हमारे हाथ में है, फिर भी हम इसे नजरअंदाज कर रहे हैं।
जब वाहन चालक नियम तोड़ते हुए पकड़े जाते हैं, तो उनका पहला काम होता है पुलिस को कोसना। “वसूली” का नाम देकर वो जुर्माने को गलत ठहराते हैं और अपनी गलती पर पर्दा डालते हैं। यह कहना हमारा प्रिय शगल बन गया है कि पहले सारी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करो, फिर मुझसे नियम पालन की बात करो। लेकिन क्या यह तर्क सही है ? अगर हम खुद नियमों का पालन नहीं करेंगे, तो व्यवस्था कैसे सुधरेगी ? पुलिस और सरकार को दोष देकर हम कब तक अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ते रहेंगे ?
यह आत्म-मंथन का समय है। हमें यह समझना होगा कि सड़क सुरक्षा सिर्फ प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हमारी अपनी जवाबदेही है। हम अपने बच्चों को कई तरह संस्कार सिखाते हैं जैसे सच बोलना, बड़ों का सम्मान करना, मेहनत करना। लेकिन क्या हम उन्हें यातायात नियमों का पालन करना सिखाते हैं ? क्या हम उन्हें यह बताते हैं कि सड़क पर अनुशासन उनकी सुरक्षा के लिए कितना महत्वपूर्ण है ? नहीं, बल्कि हम इसे नजरअंदाज कर देते हैं। नतीजा यह होता है कि नई पीढ़ी भी वही गलतियां दोहराती है जो हम करते आए हैं।
अगर आज हम अपने बच्चों में यातायात नियमों के प्रति जागरूकता और सम्मान का भाव नहीं जगाएंगे, तो कल हमें उनके लिए आंसू बहाने पड़ सकते हैं। यह एक कड़वी सच्चाई है जिसे हमें स्वीकार करना होगा।
सड़क सुरक्षा का सबसे बड़ा हल हमारे व्यवहार में छिपा है। हमें यातायात नियमों को अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा। लाल बत्ती पर रुकना, रांग साइड नहीं जाना, गति सीमा का पालन करना, और सड़क पर दूसरों का सम्मान करना—ये छोटी-छोटी बातें हैं जो बड़े बदलाव ला सकती हैं। हमें यह समझना होगा कि ये नियम हमारी बेड़ियां नहीं, बल्कि हमारी सुरक्षा के लिए बने हैं। अगर हम अब भी नहीं जागे, तो सरकार और पुलिस के पास नियमों को सख्त करने और जुर्माने की राशि बढ़ाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। लेकिन क्या हम सचमुच ऐसा चाहते हैं ? क्या हम जुर्माने के डर से नियम मानना चाहते हैं, या अपनी और अपने परिवार की खुशियों के लिए ?
सड़क पर एक सुरक्षित माहौल बनाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। अपने घरों से शुरुआत करें, अपने बच्चों को यातायात नियमों का महत्व समझाएं, उन्हें सिखाएं कि सड़क पर अनुशासन जीवन का आधार है। खुद भी नियमों का पालन करें, ताकि आप दूसरों के लिए मिसाल बन सकें। यह कोई बड़ा बलिदान नहीं है, बल्कि एक छोटा सा कदम है जो हमें एक सुरक्षित और सुखी समाज की ओर ले जा सकता है।
लाल बत्ती सिर्फ एक संकेत नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच की रेखा है। इसे पार करने की जल्दबाजी हमें कहां ले जाएगी, यह हम सब जानते हैं। तो आइए, आज से एक संकल्प लें, नियमों का पालन करेंगे, खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित रखेंगे। सड़क हादसों का यह सिलसिला थम सकता है, बशर्ते हम अभी जाग जाएं। आपका एक छोटा प्रयास न केवल आपकी जिंदगी बचा सकता है, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित कर सकता है। आखिर, सुरक्षित सड़कें ही एक सभ्य समाज की पहचान होती हैं।

राजकुमार जैन, यातायात प्रबंधन मित्र