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बहते पानी की तरह संत होते है – संजीव प्र. कुसूरकर

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प्रवीण जोशी

इंदौर*। एक गरिमामय समारोह में डॉ. बाबा साहेब तराणेकर और विलास देशपांडे चारठाणकर ने, पुणे के मराठीभाषी लेखक संजीव प्रभाकर कुसूरकर के संत ज्ञानेश्वर् के जीवन दर्शन पर लिखा ग्रंथ “ज्ञानेश्वरी द्रष्टांत् रत्नें” का लोकार्पंण किया। इस मौके पर श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर, सर्वोत्तम के प्रकाशक अश्विन खरे एवं मेघना निरखीवाले विशेष रुप से उपस्थित थे। आयोजन अ.भा त्रिपदी परिवार शाखा इंदौर, श्री सर्वोतम मराठी मासिक पत्रिका और लिवा साहित्य सेवा समिति ने सयुंक्त रूप से श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति में किया था। अध्यक्षीय संबोधन में डाॅ. प्रदीप तराणेकर ने कहा कि विष्णु सूक्त के अनुसार संत ज्ञानेश्वर ने कलियुग में भगवान विष्णु के रुप में अवतार लिया हैं, जिन्होनें मात्र सोलह वर्ष की आयु में समग्र ज्ञानेश्वरी ग्रंथ का लेखन कर लिया। देश की विभिन्न भाषाओं में ज्ञानेश्वरी ग्रंथ का अनुवाद हो चुका हैं। यदि इस ग्रंथ की एक ओवी का भी अनुभव हो जाए , तो यह मनुष्य जीवन की सार्थकता हैं ।
डाॅ तराणेकर ने कहा कि संत ज्ञानेश्वर का जन्म महाराष्ट में हुआ और उन्होने छत्तीस वर्ष की आयु में आनंदी में सजीव रुप में समाधि ली। आषाढी एकादशी पर वारकरी समाज दिंढी यात्रा द्वारा पंढरपुर जाते हैं और उसके बाद आनंदी जाते हैं। तब जाकर यह यात्रा सार्थक होती हैं।
मराठी भाषी विद्वान चारठाणकर ने कहा कि ज्ञानेश्वरी ग्रंथ केवल गीता का अनुवाद नहीं होकर जीवन का दर्शन हैं। गीता अगर स्वर्ण हैं तो ज्ञानेश्वरी एक सुंदर अलंकार हैं। इसकी पठनीयता लगातार बढती जा रही हैं। ज्ञानेश्वरी दृष्टांत रत्नें के लेखक कुसूरकर ने कहा कि ज्ञानेश्वरी में कुल 9033 ओवी है, जिसमें से मैंने केवल 380 दृष्टांत चुने है और उसी को एक पुस्तक के रूप में आकार दिया हैं। ये ऐसे सिद्धांत है जो जीवन को एक नया दर्शन देते है जैसे बहता हुआ पानी के मार्ग में खड्डे आ जाए तो पानी उसे भरकर आगे चला जाता है, वैसे ही संत होते है जो यात्रा मार्ग में संकट में फँसे व्यक्ति का समाधान कर आगे बढ़ जाते है। दूसरा गुरु के पास ज्ञान है और ज्ञानी आत्मदर्शी होता है और उसके दर्शन से व्यक्ति को अपना समाधान मिल जात है। कुसूरकर ने आगे कहा कि संत साहित्य पर मैं 20 वर्षो से अध्ययन कर रहा हूं और ज्ञानेश्वरी को रोज पारायण करता हूं।
अतिथि स्वागत रमेश खांडेकर, तारक तराणेकर, अर्चना खरे, मेघना निरखीवाले, डॉ. मोनिका कार्डिले, अश्विन खरे अदिति तराणेकर ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर किया। प्रारंभ में गायिका अमृता मांणके ने ज्ञानेश्वरी कि ओवी की सुंदर प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती जया गाडगे ने किया। अंत में आभार माना अरविंद जवलेकर ने। कार्यक्रम में मधुकर निरखीवाले, प्रफुल्ल कस्तूरे, हरेराम वाजपेयी, प्रवीण जोशी, मीनाक्षी नीमगांवकर, अनिल मोडक, सुधीर सूबेदार, जयश्री तराणेकर, राधिका इंगले, मोहन रेडगाँवकर, ललित नम्र, उमेश पारेख, सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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