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जिनका उपनयन संस्कार हुआ, उनको ही वेद पढ़ने का अधिकार हैं

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इंदौर । राजा जनक के कुलगुरु थे ऋषि याज्ञवल्क्य, जिन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की रचना की। इसमें सूर्य की उपासना को विस्तार से उल्लेख किया । शुक्ल यजुर्वेद में हस्त स्वर होते हैं, उसके बगैर इसका पारायण नहीं किया जाना चाहिए। शुक्ल यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है। कर्मकांड में शुक्ल यजुर्वेद बड़ा उपयोगी है। ये विचार वेदमूर्ति तुषार चंद्रात्रे के हैं, जो उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद का पारायण करते हुए व्यासपीठ से कहे। गुरु पूर्णिमा पर यह तीन दिवसीय आयोजन माणक चौक, राजवाडा स्थित श्री बच्चा हनुमान मन्दिर में किया जा रहा है। यह जानकारी श्री शुक्ल यजुवेर्दीय याज्ञवल्क्य संस्था के अध्यक्ष पं. उपेन्द्र जोशी और सचिव पं. तुषार जोशी ने देते हुए बताया कि शुक्ल यजुर्वेद का पारायण करने के लिए महाराष्ट्र से विशेष रुप से वेदमूर्ति आये हैं।
वेदमूर्ति महेश मोहिदे ने कहा कि शुक्ल यजुर्वेद में यज्ञ और उसकी विधि पर अधिक प्रकाश डाला गया हैं। इसमें वरुण सूक्त, अग्नि सूक्त का भी वर्णन हैं। जो हम शांति पाठ का मंत्रोच्चार करते हैं वह शुक्ल यजुर्वेद में हैं। वेद पढ़ने का अधिकार उसी को हैं जिनका उपनयन संस्कार हो चुका हैं, बिने सिले वस्त्रों को पहनकर ही वेदों का पारायण करना चाहिए। वेद पारायण से एकाग्रता बढ़ती हैं और मन शांत रहता हैं। वेदों की माता गायत्री हैं। व्यासपीठ का पूजन डाॅ. प्रफुल्ल जोशी, पं. विनोद शाजापुरकर और पं. संदीप पोफळकर ने किया। पं. तुषार जोशी ने बताया कि शुक्ल यजुर्वेद का पारायण दोपहर दो से शाम पांच बजे तक होता हैं।

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