Indore Metro

एसएससी सीजीएल परीक्षा में चयनित निकिता कोसेल्फ स्टडी से मिली कामयाबी

Spread the love

अर्जुन सिंह

इंदौर। एसएससी सीजी एल कम्बाइड ग्रेजुएट लेबल में जीएसटी इंसपेक्टर के पद पर चयनित होनहार छात्रा निकिता कंवर की कहानी उन बच्चों के लिए प्रेरणास्पद है जो जरा सी असफलता में हार मारकर जल्दी निराश हो कर टूट जाते है।
राजस्थान के एक छोटे से शहर सवाई माधोपुर निवासी और हिंदी माध्यम की छात्रा निकिता को उक्त परीक्षा के पहले प्रयास में सफलता कोसों दूर रही जबकि उसने कोचिंग भी ली थी, फिर भी उसे प्रिलिम्स मे निराशा हाथ लगी, लेकिन उसने तो तय कर रखा था कि एक ही परीक्षा में भले ही बार – बार बैठना पड़े पर एक दिन सफलता हासिल करके रहूगी और अंतत: चौथे प्रयास में वही हुआ जो निकिता का सपना था। उसे रिटन एक्जाम में 390 में से 350 अंक मिले जो जीएसटी इंसपेक्टर पद के लिए काफी थे। इंटरव्यू भी उसका बेस्ट रहा। अब उसकी पहली पोस्टिंग वडोदरा गुजरात में हुई है।
साइंस -मैथ्स विषय में ग्रेजुएट निकिता का मैथ्स और टायपिंग में पकड़ ठीक थी, लेकिन रिजनिंग, कंप्यूटर,जीके और अंग्रेजी विषय में तो वह काफी कमजोर थी, लेकिन इन सबके बावजूद उसने हार नहीं मानी और दिन – रात कठोर परिश्रम व सेल्फ स्टडी कर इसी कमजोरी पर विजय पाई। निकिता ने सबसे पहले खुद को तेयार किया, सोशल मीडिया से दूरी बनाई और अपना दिन -भर की पढाई का एक चार्ट बनाया। वह रोज अंग्रेजी के छोटे -छोटे सेंटेंस बनाती और साथ -साथ ग्रामर भी सीखती गई इसके लिए उसने एक अंग्रेजी अखबार को नियमित ध्यान से पढना शुरू किया। वह कभी अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करती तो कभी हिंदी को अंग्रेजी में ट्रांस लेट। यूटूब पर अंग्रेजी के लेक्चर सुनती और अपनी सहेलियों के साथ अंग्रेजी में कंवरसेशन भी करती इससे उसका कान्फिडेंस बढ़ता ही गया। बाकी विषयों के लिए निकिता ने खुद ही नोट्स बनाये, पूर्व में हुई एक्जाम के पेपर सॉल्वड किये। एक्यूरेसी के लिए वह लगातार माक टेस्ट देती रही कभी कभी वह एक ही दिन में 2 से 3 माक टेस्ट देती।आवश्यकतानुसार सोशल मीडिया एप्स से भी हेल्प लेती रही। हालांकि दूसरे और तीसरे प्रयास में भी निकिता सफलता को छू नहीं सकी। इसके बावजूद उसने अपना इरादा नहीं बदला और चौथे प्रयास के लिए उसने दुने उत्साह से सेल्फ स्टडी जारी रखी। स्वय को कूल रखने के लिए वह कभी – कभार हल्की फुलकी मूवी देख लेती थी जिससे फ्रेशनेस बनी रहे।
निकिता के इस पूरे सफर में माँ प्रेमकंवर और पिता विष्णु सिंह नरुका की अहम् भूमिका रही, वे अपनी बेटी को लगातार प्रोत्साहित करते रहे और उसकी खाने -पीने की चिंता भी करते रहे। भाई मयंक ने भी पर्दे के पीछे रहकर सपोर्ट किया। हालांकि निकिता अपनी सफलता का श्रेय अपने गुरुजनों को पहले देती है,जिन्होंने एक्जाम में आने वाली बाधाओ को से पूर्व परिचित कराया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *