ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने वाली पहल: ‘डिजिटल बस’ के माध्यम से 2.5 लाख लोगों को मिल रही है स्किल्स और रोजगार
एनआईआईटी (NIIT) फाउंडेशन की डिजिटल बस पहल भारत के दूरदराज और वंचित क्षेत्रों में डिजिटल असमानता को दूर करने का काम कर रही है। वर्तमान में 8 राज्यों में 16 डिजिटल बसों का सञ्चालन करते हुए यह पहल अपने दायरे को बढ़ा रही है। इस पहल में अब तीन अतिरिक्त बसें लगाने की योजना है। वंचित क्षेत्रों में टेक्नोलॉजी को सुलभ बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया यह कार्यक्रम महत्वपूर्ण डिजिटल शिक्षा और स्किल ट्रेनिंग कमी को पूरा कर रहा है।
प्रत्येक बस एक मोबाइल डिजिटल क्लासरूम है। इसमें सोलर एनर्जी, ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी, कंप्यूटिंग डिवाइस, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग टूल और प्रिंटर हैं। प्रत्येक बस के साथ चार लोगों की एक टीम जाती है। यह टीम ट्रेनिंग प्रदान करती है। ट्रेनिंग में बच्चों से लेकर युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों तक विभिन्न लोगों के बीच डिजिटल साक्षरता, वित्तीय साक्षरता, साइबर सुरक्षा, इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी स्किल और एंटरप्रेन्योरशिप जानकारी देने पर जोर दिया जाता है।
पिछले 8 सालों में इस प्रोजेक्ट ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। जैसे 45 से ज्यादा गाँवों और 50,000 से ज्यादा लोगों को सेवा प्रदान करना शामिल है। जिन्हें इस प्रोजेक्ट से लाभ मिला है, उसमें 50% महिला है। यह लोगों को सरकार से संबंधित योजनाओं और कार्यक्रम के अवसरों से अवगत कराती है, जिससे समाज को व्यापक रूप से लाभ मिलता है।
ये बसें 8 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में चल रही हैं:जिसमें छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश शामिल हैं। यह प्रयास उन क्षेत्रों में ज्यादातर प्रभावी रहा है जहाँ ट्रेनिंग और स्किल डेवलपमेंट का बुनियादी ढांचा विकसित नहीं हुआ है। इसके अलावा 5 नए राज्यों में अपना काम शुरू करने और चयनित स्थानों वाले दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुँचने के लिए 6 और डिजिटल बसें तैयार हैं। एनआईआईटी फाउंडेशन की कंट्री डायरेक्टर सुश्री चारू कपूर ने इसके बारे में बताते हुए कहा, “एक चलता फिरता क्लासरूप बनाकर दूर-दराज के क्षेत्रों में जाकर डिजिटल साक्षरता को बढ़ाया जा सकता है। इसका उदहारण डिजिटल बसें हैं जो दूरदराज के क्षेत्रों में जाकर शैक्षिक परिदृश्य को बदल रही हैं, दूरदराज के क्षेत्रों को जीवंत शिक्षण केंद्रों में बदल रही हैं और सामाजिक संपर्क प्रदान कर रही हैं। बाधाओं को पार करने और जहाँ भी उनकी सख्त आवश्यकता है, वहाँ संसाधन प्रदान करने के लिए हम न केवल समुदायों को सशक्त बना रहे हैं, बल्कि हम एक ही समय में अपने आस-पास की दुनिया के भविष्य को भी बेहतर बना रहे हैं।”
उत्तराखंड के कालाढूंगी गांव की ईशा जोशी ने कार्यक्रम के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक निःशुल्क कंप्यूटर कोर्स मेरी ज़िन्दगी को इतना बदल सकता है। अचानक मेरे दुर्घटना के बाद मुझे लगा कि मेरे सपने खत्म हो गए हैं, लेकिन इस कार्यक्रम ने मुझे एक नया जीवन दिया है। इसने न केवल मुझे बुनियादी कंप्यूटर क्षमताएँ प्रदान कीं, बल्कि इसने मेरे अन्दर दृढ इच्छाशक्ति को भी लाया है। मैं कंप्यूटर न जानने के कारण चिढ़ाई जाती थी लेकिन अब क्लास सीआर बन गई हूँ और अपने साथियों को उनके प्रोजेक्ट में मदद कर रही हूँ। इस कार्यक्रम ने मुझे अपनी पढ़ाई के लिए अपने परिवार के त्याग का बदला चुकाने और खुद को खड़ा करने के लिए सशक्त बनाया है।”
कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य रोजमर्रा के जीवन में टेक्नोलॉजी को सामान्य बनाकर तथा सामुदायिक शिक्षा को गहन बनाकर डिजिटल कमियों को कम करना है। यह टीमवर्क तथा सोशल स्किल को बढ़ावा देता है तथा ग्रामीण युवाओं को टेक्नोलॉजी को पर्सनल तथा कैरियर डेवलपमेंट मेथड के रूप में देखने के लिए सशक्त बनाता है। यह कार्यक्रम हाशिए पर पड़े समुदायों को डिजिटल इकोनोमी में समान स्तर पर आने में मदद करता है।
शिक्षा प्रदान करने के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रहे डिजिटल बस के ट्रेनर करण मेहता ने कहा, “शिक्षा अक्सर सिर्फ़ बुनियादी कंप्यूटर साक्षरता सिखाने से कहीं ज़्यादा होती है क्योंकि डिजिटल बस में ट्रेनर के तौर पर मेरा काम लोगों को खुद को सशक्त बनाने में मदद करना है। हम पिछड़े गांवों में जाते हैं, मोबाइल लर्निंग फैसिलिटीज स्थापित करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि हर किसी की देखभाल की जाए, चाहे वे कहीं से भी शुरू करें। उन्हें ईमेल बनाना, डिजिटल टूल का इस्तेमाल करना या पहली बार इंटरनेट का इस्तेमाल करना सीखना बहुत ही फ़ायदेमंद होता है। हम सिर्फ़ स्किल ही नहीं सिखा रहे हैं, बल्कि हम आत्मविश्वास, आजादी और संभावना की भावना को बढ़ावा दे रहे हैं जो जीवन को बदल सकती है और पूरे समाज को ऊपर उठा सकती है।”