सशक्त महिलाएं, स्वस्थ परिवार: परिवार नियोजन व्यवहारों में बदलाव लाने की ओर ‘विकल्प’ परियोजना द्वारा उठाये कदम
ग्वालियर । मध्यप्रदेश में परिवार नियोजन को लेकर अब ज़मीनी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। अस्थायी गर्भनिरोधक साधनों के उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है—मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा 6.9% (एनऍफ़एचएस-4) से बढ़कर 12.9% (एनऍफ़एचएस-5) तक पहुंच गया है, जो यह संकेत देता है कि अब दम्पति इस बात पर सोच विचार कर फैसले ले रहे हैं कि अपने परिवार को कैसे नियोजित रूप से बढ़ाएं और बच्चे पैदा करने का सही समय उनके लिए क्या है।
यह महत्वपूर्ण जानकारी ग्वालियर में आयोजित एक मीडिया वर्कशॉप के दौरान दी गयी, जिसका आयोजन ‘विकल्प’ परियोजना द्वारा किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य मीडिया प्रतिनिधियों को ग्रामीण भारत, विशेषकर मध्यप्रदेश एवं ग्वालियर के संदर्भ में, सरकार के प्रयासों से परिवार नियोजन और मातृत्व से जुड़े बदलते व्यवहारों और प्राथमिकताओं की जानकारी देना था, ताकि मीडिया इन विषयों को अधिक संवेदनशीलता और सटीकता के साथ जन-जन तक पहुंचा सके।
कार्यशाला में उपस्थित क्षेत्रीय कार्यालय स्वास्थ्य सेवाएं, ग्वालियर संभाग की क्षेत्रीय निदेशक डॉ नीलम सक्सेना ने बताया कि “कम उम्र में बच्चा होने पर महिला का शरीर गर्भधारण और प्रसव के लिए तैयार नहीं होता। इसलिए पहले बच्चे के जन्म में कम से कम दो साल कि देरी करने कि सलाह दी जाती है जो कि मातृ और शिशु स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है। इससे गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा कम होता है और शिशु के सुरक्षित जन्म की संभावना बढ़ जाती है। दूसरे बच्चे के बीच अंतर रखना भी मातृ और शिशु स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। दो बच्चों के बीच कम से कम 3 वर्ष का अंतर रखने से माँ के शरीर को पुनः गर्भावस्था के लिए तैयार होने का समय मिलता है, अनिमिया से भी बचाव होता है, जिससे गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जोखिम कम होते हैं।“
क्षेत्रीय कार्यालय स्वास्थ्य सेवाएं, ग्वालियर संभाग के परिवार कल्याण उप निदेशक डॉ महेश चंद्र व्यास ने जानकारी साझा करते हुए कहा कि “सरकार लगातार प्रयास कर रही है कि नवदम्पति या एक संतान वाले दंपत्तियों को सही समय पर परिवार नियोजन के महत्व के बारे में जानकारी मिले और वे अपने जीवन की परिस्थितियों के अनुसार सुरक्षित और अस्थाई गर्भनिरोधक साधन चुन सकें। इसके लिए समुदाय स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच को मजबूत किया जा रहा है — उपकेंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर आवश्यक संसाधन और परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। साथ ही, समाज में संवाद और जागरूकता बढ़ाने के लिए सास-बहू सम्मेलन और ग्रामीण स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस जैसे आयोजनों को प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि महिलाओं और परिवारों को सही जानकारी, सुविधा और भरोसा एक साथ मिल सके। सरकार की यही कोशिश है कि हर दंपत्ति को जानकारी और विकल्प दोनों समय पर मिलें, जिससे मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य बेहतर हो सके।”
कार्यशाला में ‘विकल्प’ परियोजना के राज्य परियोजना निदेशक रिशा कुशवाहा ने बताया कि “पहले बच्चे में देरी करने और दो बच्चों में अंतर रखने से दम्पतियों को स्वस्थ्य के अलावा और भी कई लाभ मिलते हैं। नवदम्पति को शादी के बाद भविष्य में आने वाले बच्चे के लिए आर्थिक तैयारी करने का समय मिल पाता है। पति या पत्नी को अणि पढ़ाई पूरी करने या व्यवसाय में संभलने का अवसर मिलता है। दो बच्चों में अंतर रखने से दोनों बच्चों को बेहतर पोषण और देखभाल प्रदान कर सकते हैं, जिससे दोनों बच्चों का विकास बेहतर होता है।“
‘विकल्प’ परियोजना सरकार के तकनीकी सहयोगी के रूप में कार्य कर रही है। समुदाय के बीच सरकार द्वारा संचालित विभिन्न मंचों के माध्यम से ‘विकल्प’ की कोशिश है कि युवा दंपतियों और उनके परिवारजनों तक सरकार द्वारा चलाये जा रहे राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम के अंतर्गत उपलब्ध साधनों की सही जानकारी पहुंचाई जा सके, जिससे वे संपूर्ण जानकारी के आधार पर अपनी पसंद से निर्णय ले सकें। परियोजना के अंतर्गत राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उप स्वास्थ्य केंद्रों पर सेवा प्रदाताओं को मूल्य स्पष्टीकरण और दृष्टिकोण परिवर्तन (वीसीएटी) जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से संवेदनशील और महिला-केंद्रित सेवाएं देने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
इसके अलावा विकल्प परियोजना अस्थाई गर्भनिरोधक साधनों से जुड़ी जानकारी अथवा सलाह पाने हेतु एक नि:शुल्क ‘सखी’ हेल्पलाइन सेवा भी उपलब्ध करवा रही है (जिसका टोल फ्री नंबर है – 1800 202 5862), जहां कोई भी महिला या दंपति सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक संपर्क कर सकते हैं । गोपनीयता का पूर्ण ध्यान रखते हुए, इस सेवा में प्रशिक्षित सलाहकार सरल भाषा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
सरकार के इन प्रयासों से अब नवविवाहित दंपति और एक संतान वाले जोड़े गर्भधारण में देरी और बच्चों के बीच अंतर रखने जैसे फैसले लेने के लिए सक्षम बन रहे हैं। अंतरा इंजेक्शन, गर्भनिरोधक गोलियां, आईयूसीडी, और कंडोम जैसे साधनों के बारे में जागरूकता बढ़ने से महिलाएं शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से मातृत्व के लिए स्वयं को बेहतर ढंग से तैयार कर पा रही हैं। इससे न केवल मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है, बल्कि परिवार की समग्र स्थिति भी सुदृढ़ हो रही है।