भारत की कूटनीति के विरुद्ध फिलिस्तीन के समर्थन का थैला टांग कर संसद में जाने का प्रदर्शन
डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
आचार्य प्रमोद कृष्णम एक समय उन समर्पित कांग्रेसी नेताओं में से एक रहे थे जिन्होंने कांग्रेस की विचारधारा और गांधीवादी सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया लेकिन कांग्रेस के प्रथम परिवार में प्रियंका को छोड़कर किसी ने ना तो उन्हें महत्व दिया और ना उनकी सलाहों पर कभी विचार ही किया। आचार्य कृष्णम एक स्पष्टवादी व्यक्ति हैं जिन्होंने राहुल गांधी के राजनीतिक कौशल पर हमेशा सवाल खड़े किए। उन्होंने यह बताने की कोशिश की कि राहुल की जगह यदि कांग्रेस प्रियंका को आगे बढ़ाने का काम करती तो शायद कांग्रेस आज बेहतर स्थिति में होती। हालांकि जब से प्रियंका वायनाड से सांसद बनी हैं वे भी संसद में कोई प्रभावी छाप नहीं छोड़ पाईं सिवाय इसके कि भारत की कूटनीति के विरुद्ध फिलिस्तीन के समर्थन का थैला टांग कर संसद में जाने का प्रदर्शन किया। जब आचार्य कृष्णम कांग्रेस के प्रथम परिवार को अपनी सलाहों से प्रभावित नहीं कर पाए तब से उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़कर बिना किसी राजनीतिक दल की सदस्यता के अपने विचारों को प्रसारित करने में कोई कंजूसी नहीं बरती। वे खुलकर और बेहिचक ऐसी बातें कह देते हैं जिनमें न केवल सच्चाई होती है बल्कि वे बहुसंख्यक लोगों को प्रभावित करती हैं। वे खुलकर कांग्रेस की कमियां बताते हैं तो खुल्लम-खुल्ला मोदी की तारीफ करते हैं। वे खुलकर राहुल गांधी की आलोचना करते हैं तो बिना किसी हिचक के सत्ताधारी दल भाजपा द्वारा किए गए कामों की सराहना करते हैं। वे ही नहीं बल्कि आज तो बहुत सारे समर्पित कांग्रेसी नेता भी जैसे शशि थरूर, सलमान खुर्शीद, आनंद शर्मा और मनीष तिवारी आदि भी अब धीरे-धीरे कांग्रेस के वैचारिक आपातकाल से बाहर निकल कर सार्वजनिक रूप से मोदी सरकार के कामों की प्रशंसा करने से नहीं चूक रहे। कारण यह नहीं है कि वे कांग्रेस छोड़कर मोदी के साथ भाजपा में जाना चाहते हैं बल्कि कारण यह है कि जो सच है वह सच ही रहेगा चाहे किसी भी व्यक्ति द्वारा बोला जाए।
आचार्य प्रमोद कृष्णम का एक बयान खासा महत्वपूर्ण और अकाट्य है जिसे भारत का कोई भी व्यक्ति नकार ही नहीं सकता। उन्होंने कहा यदि मोदी प्रधानमंत्री ना होते तो देश के जो बड़े-बड़े फैसले हुए हैं वे किसी भी कीमत पर नहीं होते। उन्होंने कहा इस देश से तीन तलाक नहीं हट सकते थे यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते, राम मंदिर का निर्माण नहीं होता यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते, धारा 370 भी नहीं हट सकती थी यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते, पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया जा सकता था यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते। उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि उनके कल्कि धाम का शिलान्यास भी नहीं हो सकता था यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते। इन सभी बातों में ना तो देश के किसी व्यक्ति को संदेह हो सकता है और ना ही इन पर अस्वीकृति। दुनिया का हर व्यक्ति जानता है कि मुस्लिम महिलाओं में तीन तलाक, राम मंदिर निर्माण, धारा 370 या पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध जो भी फैसला मोदी ने किया वह भूतो न भविष्यति ही है। देश में एक दौर ऐसा भी था जब तत्कालीन सरकार ने मुस्लिम नागरिकों के दबाव के आगे सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो के गुजारा भत्ता निर्णय को पलटने के लिए कानून को ही बदल दिया था। यदि वह सरकार आज सत्ता में होती तो क्या तीन तलाक हटा सकती थी, जो सरकार भगवान श्री राम को सुप्रीम कोर्ट में काल्पनिक बताने पर अड़ी रही हो वह क्या राम मंदिर बनने देती, जो सरकार खुद धारा 370 से जम्मू कश्मीर के चंद राजनीतिक परिवारों का तुष्टिकरण करती रही हो वह क्या 370 हटा सकती थी। निश्चित ही नहीं।यह ही नहीं ऐसे अनेक निर्णय हैं जिन पर कोई भी व्यक्ति यह कह सकता है कि यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री ना होते तो वे काम कभी ना होते जिनकी देश को बहुत बड़ी आवश्यकता थी जो जनकल्याण के रास्ते में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। अभी-अभी प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू कश्मीर में चिनाब नदी पर विश्व का सबसे ऊंचा आर्च पुल जनता को समर्पित किया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसके निर्माण को रोकने के लिए भी कई लोगों ने प्रयास किए। देश के नामी गिरामी वकील प्रशांत भूषण ने इसके निर्माण को रोकने के लिए इस प्रोजेक्ट की प्रविधि को फर्जी और लागत को बहुत अधिक बताते हुए रिट पिटीशन दायर की थी लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार करते हुए निर्माण को हरी झंडी दी। विचार कीजिए यदि कोर्ट प्रशांत भूषण की दलीलों से सहमत हो जाता तो न केवल जम्मू कश्मीर के नागरिक बल्कि देश की सेना और भारत के नागरिक इस पुल से होने वाले लाभों से वंचित हो जाते। निश्चित ही ऐसे अनेक प्रकरण है जिनमें कांग्रेस ने न केवल अड़ंगे डाले बल्कि अपनी पूरे सामर्थ्य से विरोध किया। कारण एकमात्र यही रहा कि इन उपलब्धियां का श्रेय मोदी को न मिल जाए। 9 जून को मोदी ने अपने तीनों कार्यकाल के 11 वर्ष पूरे किए हैं जो अनेक उपलब्धियों से भरे ही कहे जाएंगे। कोई शक नहीं यदि मोदी प्रधानमंत्री ना होते तो ये सारे काम असंभव के साथ-साथ किसी अन्य सत्ताधारी दल की प्राथमिकता में भी कभी शामिल नहीं होते। निश्चित ही मोदी ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने देश के हित में ऐसे काम किए जिनका जिक्र आचार्य प्रमोद कृष्णम ने तो किया ही भारत की जनता भी मानती है कि मोदी के कारण ही बहुत से जनकल्याणकारी काम संभव हो पाए। मोदी के 11 सालों के कामों में ऐसे कामों की बहुत विस्तृत सूची है जो मोदी के दृढ़ संकल्प के कारण ही संभव हो पाए। विचार कीजिए नोट बंदी, जीएसटी, डिजिटल लेनदेन, सर्जिकल और एयर स्ट्राइक, ऑपरेशन सिंदूर, स्वच्छता मिशन, मेक इन इंडिया, उज्ज्वला योजना, गरीबों के लिए घर की प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत, 81 करोड लोगों को मुफ्त राशन, कोविड वैक्सीन का भारत में निर्माण और इस संकट की घड़ी में विदेशी नागरिकों की सहायता, संसद में महिलाओं के लिए आरक्षण, भारत न्याय संहिता, नल से जल योजना, फसल बीमा योजना, किसान सम्मान योजना, अटल पेंशन स्कीम, मेक इन इंडिया, और सुकन्या समृद्धि योजना तथा 26 करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने का काम आदि ने देश में इसलिए आकार लिया क्योंकि देश के प्रधानमंत्री मोदी एक रुपए में से पूरे 100 पैसे लाभार्थियों को देने के सिद्धांत पर काम करते हैं। जो भी हो दुनिया आज मोदी के कामों की प्रशंसक ही नहीं बल्कि मुरीद है। बहुत सारी ऐसी योजनाएं हैं जो भारत में हैं और जिन पर आज विदेशी शासन अध्यक्ष अपने देश में लागू करने पर काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए जब डिजिटल लेनदेन की आधारशिला रखी जा रही थी तब पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि जिस देश में इंटरनेट सेवा सबको उपलब्ध नहीं है जहां ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षित लोग रहते हैं कैसे यह योजना देश भर में लागू हो सकती है। किंतु आज देश की आधी से अधिक आबादी न केवल डिजिटल लेनदेन कर रही है बल्कि दुनिया भर के अनेक देश इस टेक्नोलॉजी को अपनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। ऐसी ही मेक इन इंडिया की योजना का संसद में राहुल गांधी ने मजाक उड़ाते हुए कहा था यह देश में हो ही नहीं सकती। यही नहीं उन्होंने प्रतीक चिन्ह शेर का मजाक उड़ाया था लेकिन ऑपरेशन सिंदूर ने सिद्ध कर दिया कि न केवल मेक इन इंडिया ने अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की बल्कि डीआरडीओ द्वारा बनाए गए सैन्य उपकरणों और आयुध सामग्री ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। आज देश में ऐसा प्रधानमंत्री मोदी के रूप में है जिसने 1960 से लागू भारत-पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि को एक झटके में स्थगित कर पाकिस्तान को छठी का दूध याद दिला दिया। लोग कहते थे पानी को कैसे रोकोगे मोदी ने यह भी करके दिखा दिया। जो लोग लोकसभा 2024 के चुनाव परिणामों को देखकर कहते थे कि अल्पमत की मोदी सरकार कभी भी गिराई जा सकती है और मोदी अब कमजोर होकर बड़े और निर्णायक फैसले नहीं कर पाएंगे वे आज ऑपरेशन सिंदूर और वक्फ कानून संशोधन से न केवल हतप्रभ हैं बल्कि भविष्य में मोदी के निरंतर शासन की संभावनाओं से डरे हुए हैं क्योंकि सी वोटर सर्वे के अनुसार देश की 59.3 प्रतिशत जनता मोदी को 2029 में पुनः प्रधानमंत्री बनते हुए देखना चाहती है।
