मोदी की आक्रामकता से परेशान विपक्ष
डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
आज नरेंद्र मोदी केवल एक नाम नहीं बल्कि राजनीति के ब्रांड एम्बेसडर बन गए हैं जिनकी साख का लोहा भारत ही नहीं बल्कि विश्व का हर छोटा बड़ा देश मान रहा है। मोदी आज की तारीख में जहां एक ओर भारत में लोक कल्याणकारी कामों और देश की सुरक्षा के नए आयाम को स्थापित करने वाले दृढ़ संकल्पित नेता के रूप में माने और जाने जा रहे हैं वहीं विश्व समुदाय में आतंकवाद के कट्टर विरोधी और उसके खात्मे के लिए किसी भी हद तक आक्रामक कार्रवाई से गुरेज ना करने वाले नेता के रूप में जाने जा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बेनीस ने नरेंद्र मोदी को लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रहरी बताते हुए दुनिया का बॉस बताया लेकिन देश का विपक्ष मोदी को गालियां दे रहा है। जिस पाकिस्तान को भारत की पूर्ववर्ती सरकारों ने उसकी आतंकी कारगुज़ारियों के बावजूद यह कहकर की दोस्त बदला जा सकता है किंतु पड़ोसी को बदला नहीं जा सकता हमेशा बर्दाश्त किया उसे मोदी ने अपने 11 साल के कार्यकाल में घुटनों पर आने को मजबूर कर दिया। यह मोदी ही हैं जिन्होंने पाकिस्तान की न केवल आर्थिक रूप से कमर तोड़ दी बल्कि अंतरराष्ट्रीय जगत से भीख मांगने को मजबूर कर दिया। यही नहीं मोदी ने पाकिस्तान की न्यूक्लियर पावर की धमकी के नैरेटिव की हवा निकाल दी। यह सारी आक्रामक कार्रवाई उन्होंने एक दूरदर्शी एवं दृढ़ संकल्पित नेता के रूप में की और जब तक वह भारत के प्रधानमंत्री हैं करते रहेंगे। वे दुनिया के इकलौते ऐसे नेता हैं जो वे कहते हैं वह करते हैं।
जब भारत का कोई व्यक्ति या नेता पाकिस्तान से सिंधु जल समझौते को निरस्त करने के निर्णय के बारे में सोच भी नहीं सकता था उन्होंने एक झटके में करके दिखा दिया। 1960 में लागू हुई यह संधि भारत की तत्कालीन सरकार का ऐसा अलाभकारी निर्णय था जिसमें भारत को सिवाय नुकसान और दुश्मन देश को फायदे के अलावा कुछ नहीं था। इस नदी का 80 प्रतिशत पानी भारत से पाकिस्तान जाता था और भारत को मात्र 20 प्रतिशत पानी के उपयोग की छूट थी। दुनिया में ऐसा कोई देश शायद ही होगा जो अपने पड़ोसी से इस तरह की संधि करता हो या कि की हो। आज मोदी ने दिखा दिया कि सिंधु समझौते के तहत पाकिस्तान में पानी और भारत में खून एक साथ नहीं बह सकते। मोदी के इस एक निर्णय ने पाकिस्तान को आज त्राहि त्राहि की स्थिति में खड़ा कर दिया है। वह संयुक्त राष्ट्र में रो और गिड़गिड़ा रहा है कि भारत ऐसा कैसे कर सकता है। यह अमानवीय है। कोई पाकिस्तान से पूछे की पठानकोट, उरी, पुलवामा और पहलगाम की आतंकी कार्रवाइयां पाकिस्तान का मानवीय कृत्य था। सच्चाई तो यह है कि सिंधु जल समझौते के स्थगन से होने वाली परेशानी की अभी तो शुरुआत है जब भारत सिंधु नदी सहित झेलम और चिनाब के पानी को रोकेगा तो वह पेयजल ही नहीं बल्कि खाद्यान्न के लिए भी तरसेगा। 65 साल पहले हुए समझौते को तब के हालातो में जब भारत की जनसंख्या मात्रा 44.6 करोड़ थी आंशिक रूप से उचित मान भी जाए तो आज की स्थिति में यह कतई उचित नहीं है। आज जब भारत की आबादी 145 करोड़ है 1960 की संधि को कैसे सही माना जा सकता है। निश्चित ही अब भारत की जरूरत कई गुना बढ़ गई है। ऐसे में पुराने समझौते को स्थगित करना मोदी का एक बहुत बड़ा निर्णय है। निसंदेह पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान खून के आंसू रोने को मजबूर है क्योंकि आज उसकी रियाया न केवल पानी की किल्लत से जूझ रही है बल्कि दवाईयों की कमी से भी जूझ रही है। जो पाकिस्तान कल तक आतंकवादी गतिविधियों से भारत को आए दिन आघात पहुंचाता था वह भारत के कूटनीतिक आघातों तथा 6 एवं 7 मई की रात से 10 मई तक भारत द्वारा की गई सैन्य कार्रवाइयों से हतप्रभ और गमगीन है। कौन नहीं जानता पाकिस्तान भारत में मोदी राज का 2014 से ही विरोध करता रहा है क्योंकि उसे भारत में कांग्रेस का शासन सूट करता था जो पिटकर भी मुंह पर उंगली रख पाकिस्तान को सहायता करता था। यही नहीं आज की स्थिति में पाकिस्तान कांग्रेस के नेताओं और समूचे विपक्ष के बयानों को कोट कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार की कार्रवाइयों को गैर जरूरी बता रहा है। भारत के कई विपक्षी नेता पाकिस्तानी मीडिया के पोस्टर बॉय बने हुए हैं। निश्चित ही अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि जितना मोदी का विरोधी पाकिस्तान है उतना ही भारत का विपक्ष भी मोदी का विरोधी है। आज देश में मोदी विरोधियों को समझ ही नहीं आ रहा कि वह मोदी के बढ़ते कद और शासन की आक्रामक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शैली की काट किस तरह करे। पहलगाम हमले के बाद ऑल पार्टी मीटिंग में तो विपक्ष ने अपनी छवि सुधारने के लिए पाकिस्तान के विरुद्ध लिए जाने वाले सरकार के हर फैसले का समर्थन करने का दिखावा किया किंतु जब पाकिस्तान पर गर्दन तोड़ आक्रामक सैन्य कार्रवाई और कूटनीतिक निर्णय से मोदी का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कद ऊंचा होता दिखा तो परेशान होकर ऊल जलूल सवाल खड़े करने को मजबूर होता दिखाई दे रहा है। विपक्ष इसलिए भी परेशान है कि उड़ी के बाद की सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट की एयर स्ट्राइक के बाद तो उसने सबूत मांग कर अपना पक्ष मजबूत करने की असफल कोशिश की थी किंतु इस बार तो सबूत चीख चीख सीख कर दुनिया को खुद बता रहे हैं कि भारत ने पाकिस्तान के घर में घुसकर उसकी धुलाई की। भारत ने पाकिस्तान के नौ आतंकी अड्डे तहस-नहस कर दिए और 11 एयरबेस को गंभीर क्षति पहुंचाई। तब भी विपक्ष सबूत मांगने की हिमाकत कर रहा है। यही नहीं राहुल गांधी विदेश मंत्री एस जयशंकर से यह भी पूछ रहे हैं कि उन्होंने हमले से पहले पाकिस्तान को सूचित क्यों किया। यह भी की भारत के कितने विमान लड़ाई में नष्ट हुए। लगता है वे भारत को ज्यादा सामरिक और आर्थिक नुकसान पर ज्यादा खुश होते क्योंकि उन्हें मोदी की असफलता को ढिंढोरा पीटने का मौका मिल जाता।वस्तुत: विपक्ष उन बातों पर फोकस कर रहा है जो औचित्यहीन हैं। वह पूछ रहा है कि सरकार यह बताए कि वे चार आतंकी जिन्होंने पहलगाम को अंजाम दिया कहां हैं या कि विदेश मंत्री जयशंकर ने सैन्य कार्रवाई की पाकिस्तान को पूर्व सूचना क्यों दी या कि प्रधानमंत्री ने सीज फायर के लिए ट्रंप के सामने समर्पण क्यों किया या कि जब भारत पाकिस्तान पर बढ़त लेकर उसकी कमर तोड़ रहा था तब उसने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिश क्यों नहीं की। सच्चाई तो यह है कि विपक्ष मोदी की बढ़ी हुई लोकप्रियता से इतना घबरा गया है कि वह समझ ही नहीं पा रहा कि कैसे अपनी छवि और प्रासंगिकता को बनाए रखे। जब कांग्रेस या राहुल गांधी यह पूछते है कि मोदी ने यह क्यों नहीं किया तो जनता विपक्ष से पूछती है कि जब 1971 में भारत ने पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को बंदी बनाया तब इंदिरा जी ने पीओके क्यों नहीं लिया, यही नहीं इन बंदी सैनिकों को छोड़ने के बदले भारत के जांबाज 54 सैनिकों को जो पाकिस्तान की गिरफ्तार में थे क्यों नहीं छुड़ाया, या कि पंडित नेहरू ने 1948 में सीज फायर क्यों किया या कि 2008 के 26/ 11 के बाद भारत ने शरमन शेख में यह क्यों कहा कि आतंकवाद की वजह से शांति वार्ता रुकती नहीं है। यही नहीं भारत ने 26/ 11 के बाद पाकिस्तान को 55 हजार करोड रुपए क्यों दिए। (जहां तक विदेश मंत्री द्वारा पाकिस्तान को हमले की पूर्व सूचना का सवाल है तो यह उस निर्णय का पालन है जो कांग्रेस के जमाने में 1991 में लिया गया था कि भारत एल ओ सी पर कोई कार्रवाई करेगा तो उसकी पूर्व सूचना पाकिस्तान को देना होगी।) जनता और भाजपा द्वारा पूछे गए सब प्रश्नों का जवाब कांग्रेस के पास नहीं है लेकिन मोदी से सवाल पूछना जरूरी है। यही कारण है कि मोदी का हर एक कदम विपक्ष को एक सीढ़ी नीचे उतार देता है। पहलगाम हमले के बाद विपक्ष सोच रहा था कि मोदी डर गए हैं। इस नैरेटिव को व्यक्त करने के लिए उसने 28 अप्रैल को मोदी के अक्श का एक पोस्टर जारी किया जिसमे गर्दन पर सर नहीं था और शरीर पर हाथ पैर नहीं थे। जिसका शीर्षक था गायब। इस पोस्ट की भाजपा ने ही नहीं बल्कि देश भर ने आलोचना की। यही नहीं भाजपा ने कांग्रेस को सिर तन से जुदा गैंग का समर्थक बताया। निश्चित ही कांग्रेस को नहीं मालूम था कि 6 मई की रात को मोदी ऐसा कुछ करेंगे कि विपक्ष को सांप सूंघ जाएगा और मोदी अंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक मजबूत और आतंक विरोधी छवि बनाने में कामयाब हो जाएंगे। जो भी हो विपक्ष के पास सिवाय विधवा विलाप के कुछ नहीं है। मोदी का हर एक कदम चाहे वह सभी दलों के सदस्यों के डेलिगेशन से दुनिया भर को पाकिस्तान की करतूतों से अवगत कराने का हो या कठोर कूटनीतिक निर्णय का हो पाकिस्तान की कमर तोड़ रहा है जिससे विपक्ष परेशान है जिसकी काट उसके पास ना आज है और ना कल ही होगी।
