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प्रगति साथी : जहाँ हर सपना पाता है एक सच्चा साथी

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भोपाल। कुछ काम व्यवसाय के लिए होते हैं और कुछ सेवा के लिए। ‘प्रगति साथी’ उन्हीं दुर्लभ पहलों में से एक है, जो सिर्फ फायदे के लिए नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की बुनियाद को मजबूत करने के लिए शुरू की गई थी। इस पहल के पीछे हैं धीरज दुबे – एक ऐसे इंसान जिन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है दूसरों की ज़िंदगी आसान बनाना।

एक सोच, जो सेवा बन गई: धीरज दुबे ने गाँव के माहौल और किसानों की कठिनाइयों को बहुत करीब से महसूस किया है। उन्हें समझ में आया कि ज़्यादातर लोग योजनाओं की जानकारी और सही मार्गदर्शन के अभाव में अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते। इसी सोच को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने अपने दो पेशेवर साथियों – सीए नेहा वर्मा और सीएस प्रिया जैन के साथ मिलकर ‘प्रगति साथी’ की शुरुआत की।

जब सेवा बनती है संकल्प: प्रगति साथी’ का मकसद सिर्फ कागज़ों को भरना या लोन दिलवाना नहीं है। यह एक ऐसी संस्था है जो सच्चे मन से उन लोगों के लिए काम कर रही है, जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं, लेकिन आत्मनिर्भर बनने का जज़्बा रखते हैं। चाहे वह किसान हो, बेरोज़गार युवा हो या कोई महिला जो घर बैठे कुछ करना चाहती है—हर किसी को सही योजना, दस्तावेज़ी सहायता, ट्रेनिंग और बैंक से लोन तक का सहयोग पूरी ईमानदारी से दिया जाता है।

आज प्रगति साथी के माध्यम से:
• 100 से अधिक खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ (फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स) ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू हो चुकी हैं,
• 150 से अधिक पशुपालन आधारित व्यवसाय आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुके हैं,
• और अनेक स्टार्टअप्स छोटे पैमाने पर शुरू होकर अब बड़े ब्रांड बन रहे हैं।

यह सब संभव हुआ है सिर्फ मार्गदर्शन से नहीं, बल्कि ज़मीन पर साथ खड़े रहने की सोच से।

महिलाओं को मिली पहचान, युवाओं को मिला: रास्ता धीरज दुबे और उनकी टीम गाँव-गाँव जाकर जागरूकता शिविर लगाते हैं। पंचायतों में बैठकर ग्रामीण महिलाओं को स्वरोज़गार के लिए प्रेरित करते हैं। आज उनकी प्रेरणा से कई महिलाएं घरेलू उत्पाद बनाकर उन्हें ब्रांड की तरह बाज़ार में बेच रही हैं।

एक पवित्र प्रयास, जो हर किसी के लिए है:धीरज दुबे का स्पष्ट कहना है—“अगर आप कुछ करना चाहते हैं, पर आपके पास संसाधन नहीं हैं, तो हम आपके साथ हैं। हम आपका सिर्फ मार्गदर्शन नहीं करते, बल्कि आपके सफर में हर मोड़ पर आपके साथ चलते हैं।” उनका यह प्रयास केवल एक कंसल्टेंसी नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की चुपचाप चल रही एक क्रांति है।

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