एआई वॉशिंग: तकनीकी प्रगति के नाम पर छलावा हर नवीन उत्पाद एआई संचालित नहीं होता
राजकुमार जैन, एआई विशेषज्ञ
आधुनिक युग में कृत्रिम बुद्धिमत्ता मानव सभ्यता के लिए एक क्रांतिकारी संभावना बनकर उभरी है. यह एक ऐसी तकनीक है, जो न केवल हमारे दैनिक जीवन को सरल बनाने का वादा करती है, बल्कि उद्योग, स्वास्थ्य, शिक्षा और संचार जैसे क्षेत्रों में अभूतपूर्व परिवर्तन की आकांक्षा भी रखती है. किंतु इस प्रगति के समांतर एक छायादार प्रवृत्ति ने भी जन्म लिया है, जिसे “एआई वॉशिंग” कहते हैं. यह वह कपटपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें व्यवसायिक संस्थाएं अपने उत्पादों अथवा सेवाओं को कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संचालित बताकर उपभोक्ताओं और निवेशकों को भ्रमित करती हैं, जबकि वास्तविकता में उनकी तकनीक इस दावे से कोसों दूर होती है.
“एआई वॉशिंग” एक ऐसी कुटिल रणनीति है, जिसमें कंपनियां अपने उत्पादों को आधुनिकता और नवाचार का प्रतीक बनाने हेतु “AI” शब्द का दुरुपयोग करती हैं. यह “ग्रीनवॉशिंग” की तर्ज पर एक नया छल है, जहां पर्यावरणीय चेतना के नाम पर झूठे और भ्रामक दावे किए जाते हैं. एआई वॉशिंग में कोई साधारण सॉफ्टवेयर, जो मात्र नियम-आधारित तर्क (Rule-Based Logic) पर कार्य करता हो, उसे “कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित” कहकर प्रचारित किया जाता है. इसका उद्देश्य स्पष्ट है—उपभोक्ताओं की तकनीकी जिज्ञासा और निवेशकों की आर्थिक आकांक्षा को भुनाना. इसके साथ ही बाजार में किसी उत्पाद या सेवा की क्षमताओं को ‘एआई’ के नाम पर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है जैसे स्वायत्त निर्णय लेना या स्वयं सीखना, ताकि यह वास्तव में जितना है उससे अधिक परिष्कृत, अभिनव या बुद्धिमान लगे और बड़े मुनाफे से साथ आसानी से बेचा जा सके. कोई हैरानी की बात नहीं होगी कि कल को आपके समक्ष मेरे टूथपेस्ट में नमक है की तरह मेरे टूथपेस्ट में एआई है कहकर भविष्य का टूथपेस्ट प्रस्तुत किया जाए
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर हर क्षेत्र में एआई का व्यापक दखल और असर स्पष्ट दिखाई पड़ता है. विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियाँ एआई-युक्त (एआई- पावर्ड) उत्पादों और सेवाओं का अतिरंजित प्रचार कर रही हैं. एआई के उपयोग से मानव जीवन को बेहतर बनाने के लुभावने वादे किए जा रहे हैं. लेकिन एआई समावेशन के यह दावे पूरी तरह से सच्चे नहीं होते हैं.
इस प्रवृत्ति का उद्भव हाल के दशक में तीव्र हुआ है. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन (2023) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 60% से अधिक स्टार्टअप्स, जो अपने उत्पादों को “AI-संचालित” बताते हैं, वास्तव में मशीन लर्निंग या डीप लर्निंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग नहीं करते. भारत में भी यह चलन बढ़ता जा रहा है, जहां तकनीकी स्टार्टअप्स की संख्या 2024 तक 1,00,000 से अधिक हो चुकी है (नासकॉम रिपोर्ट, 2024), और इनमें से एक बड़ा हिस्सा अपने प्रचार में “AI” शब्द का प्रयोग करता है.
अतीत ने हमें सिखाया है कि कि नयी तकनीक के आगमन के साथ फरेबी और मौकापरस्त भी आते हैं. एआई वॉशिंग एक ऐसी ही मार्केटिंग रणनीति है जिसका इस्तेमाल कंपनियाँ अपने उत्पादों में इस्तेमाल की जाने वाली एआई तकनीक की मात्रा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए करती हैं. एआई वॉशिंग का लक्ष्य कंपनी की पेशकशों को वास्तविकता से ज़्यादा उन्नत दिखाकर एआई तकनीक में लोगों की बढ़ती दिलचस्पी का फ़ायदा उठाना है.
एक बड़ी नामी गिरानी शीतल पेय कंपनी भी एआई के नाम पर भारी लाभ कमाने के आकर्षण से बच नहीं पाई है. एक नया पेय पेश करते हुए उन्होंने दावा किया कि इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करके बनाया गया है, जिससे यह भविष्यवादी और नवीन प्रतीत हो. कंपनी ने कहा, इस ब्रांड के दीवानों की जुबान तक कल का स्वाद आज पहुंचाने के लिए इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ सह निर्मित किया गया है. जबकि हम यह जानते हैं कि एआई स्वाद का निर्माण या पहचान नहीं कर सकता.
मार्च 2024 में अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (SEC) ने दो बड़ी निवेश फर्मों पर जुर्माना लगाया, क्योंकि इन्होंने अपने निवेश मॉडल को “AI-संचालित” बताकर ग्राहकों को गुमराह किया. जांच में पाया गया कि इनका सॉफ्टवेयर मात्र पारंपरिक डेटा विश्लेषण पर आधारित था, न कि मशीन लर्निंग पर. भारत में भी कई फिनटेक कंपनियां अपने ऋण-वितरण मॉडल को “AI-आधारित” बताती हैं, जबकि वे केवल बुनियादी एल्गोरिदम का उपयोग करती हैं.
2022 में एक प्रसिद्ध भारतीय ई-कॉमर्स कंपनी ने अपने चैटबॉट को “AI-संचालित सहायक” के रूप में प्रचारित किया, किंतु उपयोगकर्ताओं ने पाया कि यह केवल पूर्व-लिखित स्क्रिप्ट्स का पालन करता है. ये उदाहरण दर्शाते हैं कि “AI” शब्द का प्रयोग उपभोक्ताओं की भावनाओं और अपेक्षाओं के साथ खिलवाड़ करने का साधन बन गया है.
एआई अपने आप में एक व्यापक शब्द है और एक आम आदमी के लिए इसकी परिभाषा अस्पष्ट और लचीली होती है. यही अस्पष्टता एआई वॉशिंग को बढ़ावा दे रही है. *जब औसत उपभोक्ता किसी उत्पाद या सेवा के संबंध में “एआई” सुनता है, तो वो सहज ही उसे उच्च गुणवत्तापूर्ण मान लेता है. एआई शब्द का यह असरदार जादू कंपनियों को इसकी लोकप्रियता को भुनाने का मौका प्रदान करता है. यदि उपभोक्ता को इस बारे में स्पष्ट रूप से सच बताया जाए कि इन उत्पाद और सेवाओं में एआई का उपयोग कैसे और कितना किया गया है तो उनकी बिक्री पर असर पड़ सकता है. * अत: कम्पनीयां झूठे लेकिन सच्चे प्रतीत होने वाले दावे सामने रखती हैं. एआई वॉशिंग की तुलना डॉट-कॉम बबल से की जा सकती है, जब व्यवसाय अपने मूल्यांकन को बढ़ाने के लिए व्यवसाय के नाम के अंत में “डॉट-कॉम” शब्द जोड़ते थे.
सुर्खियां बटोरने में लगातार प्रथम पायदान पर जमे हुए ओपन एआई निर्मित चैटजीपीटी के अवतरण के बाद से एआई, और विशेष रूप से जनरेटिव एआई, में निवेशकों का रुझान बढ़ा है. निवेशक ऐसे उत्पादों और निर्माताओं का समर्थन करना चाहते हैं जिनके बारे में उन्हें लगता है कि उन्हें भी ऐसी ही सफलता मिलेगी. इसलिए कम्पनीयों को लगता है कि चाहे वो उत्पाद में शामिल हो या न हो, जनरेटिव एआई को अपने विज्ञापन में शामिल करना, निवेशकों को उनकी ओर आकर्षित करेगा.
यदि किसी उत्पाद में विशिष्ट एआई तकनीक के बारे में स्पष्ट रूप से उजागर नहीं किया गया है तो यह समझना कठिन होता है कि उत्पाद विज्ञापन की तुलना में एआई का उपयोग अलग तरीके से करता है, या उससे कम करता है. उदाहरण के लिए, पहले से प्रचलित मशीन लर्निंग या न्यूरल नेटवर्क जैसे भारी भरकम शब्दों को अपेक्षाकृत नए शब्द जेनरेटिव एआई के साथ प्रस्तुत करने से भ्रम का जाल चतुराई से बिछाया जा सकता है. और किसी उत्पाद को एआई-संचालित के रूप में वर्णित करने के लिए इसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है. यह उपभोक्ताओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है. “AI” शब्द आज आशा और प्रगति का प्रतीक बन गया है. जब यह आशा झूठी सिद्ध होती है, तो लोगों में निराशा और अविश्वास पैदा होता है.
एआई वॉशिंग के प्रभाव बहुआयामी और गंभीर हैं. यह उपभोक्ताओं के विश्वास को ठेस पहुँचाता है. जब लोग ऐसे उत्पाद खरीदते हैं जो उनकी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते, तो उनकी तकनीक के प्रति आस्था डगमगा जाती है. गार्टनर की एक रिपोर्ट (2024) के अनुसार, 45% उपभोक्ता अब “AI-संचालित” दावों पर संदेह करते हैं, जो वास्तविक नवाचारों के लिए भी चुनौती बन सकता है.
आज एआई प्रचार दुष्चक्र अपने चरम पर है. हम यह पूछना भूल गए हैं कि क्या हर काम में एआई का उपयोग करना सही और समझदारी भरा होता है. यह बाजार में अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा को जन्म देता है. गुणवत्ता के बजाय प्रचार पर आधारित कंपनियां छोटे व्यवसायों को नुकसान पहुँचाती हैं. विश्व आर्थिक मंच (WEF) के एक अध्ययन (2024) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 30% छोटे AI स्टार्टअप्स पिछले दो वर्षों में बंद हो गए, जिनमें से कई इस असमान प्रतिस्पर्धा के शिकार थे.
एआई वॉशिंग की व्यापकता को आंकड़े और स्पष्ट करते हैं. एमएमसी वेंचर्स की एक रिपोर्ट (2023) के अनुसार, यूरोप में 40% कंपनियां जो “AI” का दावा करती हैं, वास्तव में इस तकनीक का उपयोग नहीं करतीं. भारत में नासकॉम के एक सर्वे (2024) ने खुलासा किया कि 35% तकनीकी स्टार्टअप्स अपने मार्केटिंग में “AI” शब्द का प्रयोग करते हैं, परंतु केवल 15% के पास वास्तविक AI क्षमता है. वैश्विक स्तर पर AI मार्केट 2025 तक 190 अरब डॉलर तक पहुँचने की संभावना है (IDC, 2024), और इस बढ़ते बाजार में एआई वॉशिंग की समस्या और गहरा सकती है.
एआई वाशिंग से बचने के लिए जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है. हमें हर चीज में आँख मूंदकर एआई को लागू करने वाली इस एकतरफा अतिरंजित प्रवृती से किनारा करना होगा और वास्तव में उन विशिष्ट कार्यों और क्षेत्रों के बारे में सोचना होगा जिनके लिए एआई फायदेमंद हो सकता है. इस कपट से निपटने के लिए लोगों को यह समझना होगा कि हर “AI-संचालित” दावा सत्य नहीं होता. तकनीकी विशेषज्ञों की सलाह और उत्पाद समीक्षाएँ इस दिशा में सहायक हो सकती हैं.
उत्पादों में एआई के उपयोग से प्रदर्शन-सुधार के दावे बिना किसी शर्त के होने चाहिए और उनके समर्थन में वैज्ञानिक प्रमाण भी होने चाहिए. जब कोई यह दावा करता है कि उसका एआई उत्पाद किसी गैर-एआई उत्पाद से अधिक कुछ करता है तो उसके लिए अधिक कीमत चुकाने से पहले उस दावे के पक्ष में पर्याप्त सबूतों की मांग की जानी चाहिए. हमे यह देखना चाहिए कि क्या उत्पाद में एआई का उपयोग वास्तव में किया गया है. हमें यह समझना होगा कि सिर्फ उत्पाद विकास की प्रक्रिया में एआई टूल्स का उपयोग करने से अंतिम उत्पाद एआई-संचालित नहीं हो जाता है.
नियामक ढांचे को सुदृढ़ करना होगा. भारत में अभी तक “AI” शब्द के प्रयोग पर कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं. सरकार को विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) के साथ मिलकर ऐसे नियम बनाना चाहिए जो कंपनियों को जवाबदेह ठहराएँ. उदाहरण के लिए, अमेरिका में फेडरल ट्रेड कमिशन (FTC) ने 2023 में AI दावों के लिए कड़े मानक लागू किए, जिसके परिणामस्वरूप 20% से अधिक कंपनियों ने अपने विज्ञापनों को संशोधित किया.
