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बिहार की राजनीति में अपरिहार्य हैं नीतीश कुमार

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डॉ हरिकृष्ण बड़ोदिया

वैसे इस बात में कोई संशय था ही नहीं कि बिहार के विपक्षी महा गठबंधन का नेता तेजस्वी यादव के अलावा कोई और हो सकता था। तेजस्वी पिछले 5 सालों में जिस मुखरता से राजद खेमे की बैटिंग संभाल रहे थे उससे महागठबंधन को लाभ ही हुआ है। चूंकि तेजस्वी यादव राज्य के उपमुख्यमंत्री रहे हैं इससे उनका कद महागठबंधन के अन्य नेताओं की तुलना में बड़ा ही है। निश्चित ही ये स्थितियां महा गठबंधन के पक्ष में जाती हैं। किंतु बिहार की राजनीति शेष भारत के अन्य राज्यों से बिल्कुल अलग है। पिछले कई सालों से यहां की राजनीति वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। यह एक स्थापित तथ्य है कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार अपरिहार्य हैं। नीतीश एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने कई बार पाला बदला किंतु उन्हें जनता ने कभी नकारा नहीं। वे जिस भी धड़े में गए उस धड़े को हमेशा जनता ने समर्थन किया। इसका प्रमुख कारण जहां एक ओर लालू यादव और उनके परिवार की छवि भ्रष्टाचार से दागदार है तो वहीं नीतीश की आज तक न केवल एक बेदाग ईमानदार राजनेता की छवि है बल्कि उनके ऊपर आज तक भ्रष्टाचार का एक भी छींटा नहीं पड़ा। यही नहीं उन्होंने लालू यादव की उस राजनीति का भी समूल सफाया किया जिसमें हत्या, फिरौती, भाई भतीजावाद, दबंगई और स्वेच्छाचारी नेतागिरी का बोलबाला था, जिसे आज भी जंगल राज की संज्ञा दी जाती है। लालू के शासनकाल में बिहार में अपराधियों के बुलंद हौसलों ने आम जनता को त्रस्त करके रखा था। उच्च जाति के लोगों का दलितों पर अत्याचार एक आम बात थी। ऐसे में नीतीश ने इन पर नकेल कसने का काम किया। यही कारण है कि नीतीश जब भी बिहार के लोगों के बीच जाते हैं उन्हें जनता का समर्थन मिलता है।
इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा के चुनाव सभी दलों को बहुत महत्वपूर्ण हैं। जहां एक ओर राजद और कांग्रेस का महा गठबंधन अपने 2020 के उस प्रदर्शन से उत्साहित है जिसमें उसने 243 में 110 सीटें पाईं थीं वहीं वह नीतीश कुमार के विगत एक दो सालों में स्वास्थ्य को आधार बनाकर जनता को यह एहसास कराने की कोशिश कर रहा है कि वर्तमान सरकार अब बिहार के लिए मुफीद नहीं है। तेजस्वी यादव ने अभी-अभी यह कहकर कि नीतिश सरकार और प्रशासन पूरी तरह से नकारा हो गया है प्रचार की रणनीति तय कर दी है। उन्होंने नीतीश पर व्यक्तिगत हमला कर शासन व्यवस्था और नीतीश के स्वास्थ्य पर एक ही वाक्य में तीन बिंदुओं पर जनता का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा यह सरकार खटारा हो चुकी है, सारा सिस्टम नकारा हो चुका है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थके हारे हैं। स्पष्ट है कि उनका हमला सीधा-सीधा नीतीश कुमार की सरकार, प्रशासन और व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर रहा है। वैसे महागठबंधन यह अच्छी तरह से जानता है कि नीतीश बिहार की राजनीति में एक अहम स्थान रखते हैं। उनकी उपस्थिति मतदाताओं को सकारात्मक संदेश देती है। अगर नीतीश कुमार फिर पाला बदलने की इच्छा जाहिर करें तो राजद उन्हे बाहें फैला कर गले लगाने में चूकेगा नहीं। जो इस बात को स्पष्ट करता है कि नीतीश किसी भी गठजोड़ के लिए हमेशा लाभदायक ही रहे हैं। यही स्थिति भाजपा की है। भाजपा जानती है कि हालांकि पिछले 2020 में उसे जनता ने भरपूर समर्थन किया और 243 सदस्यों की विधानसभा में 75 सीटें जीतकर उनका चुनावी प्रदर्शन शानदार रहा लेकिन वह इस बात को नकार नहीं सकती कि उसका यह प्रदर्शन नीतीश कुमार के साथ के बिना संभव नहीं था। यही कारण था कि जदयू की विधानसभा में मात्र 43 सीटें होने के बावजूद तथा एनडीए की 125 सीटों में 75 भाजपा की होने के बाद भी उन्होंने नीतीश कुमार को ही अपना मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि 2022 में नीतीश ने पाला बदलकर महागठबंधन के साथ सरकार बनाई लेकिन लालू परिवार के दबाव और लालू पुत्रों के स्वेच्छाचारी व्यवहारों से परेशान हो नीतीश ने 2023 में पुनः राजद का साथ छोड़कर एनडीए का साथ लिया। एक सच्चाई यह भी है कि यह नीतीश ही थे जिन्होंने इंडी गठबंधन की नींव डाली लेकिन विरोधी महत्वाकांक्षी नेताओं जिनमें लालू भी शामिल थे ने नीतीश को इंडी गठबंधन का ना तो संयोजक बनने दिया और ना ही कोई विशेष सम्मान दिया जिससे नाराज होकर नीतीश ने इंडी गठबंधन का साथ छोड़ एनडीए से जुड़ना उचित समझा। हालांकि दोनों बार पाला बदलते समय नीतीश ने यही दोहराया था कि अब मैं कहीं भी नहीं जाऊंगा।
बीजेपी बिहार में पिछले चुनाव की तरह ही आज भी एक सशक्त खिलाड़ी है और हरियाणा महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा में एक तरफा जीत के झंडे गाड़ने के बाद उसकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है तो भी वह नीतीश के बिना अपनी सफलता को अक्षुण्ण नहीं मानती। यही कारण है कि विपक्ष द्वारा लगातार नीतीश के व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर हमले के बावजूद भी उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने स्पष्ट कर दिया कि एनडीए बिहार में नीतीश के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी और अगले सीएम नीतीश कुमार ही होंगे जो स्पष्ट करता है कि नीतीश बिहार की राजनीति के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। यूं तो बिहार में राजद, जदयू और भाजपा तीन ही प्रमुख दल हैं किंतु एक चौथा दल भी इस बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पुरजोर मेहनत कर रहा है। वह है प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी। प्रशांत किशोर ने लगातार पद यात्रा करके जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। प्रशांत किशोर राजद, जदयू और भाजपा पर हमलावर रहे हैं। देखना होगा कि वह बिहार के मतदाताओं को कितना प्रभावित कर पाते हैं। हालांकि उन्होंने बिहार विधानसभा के उपचुनाव में अपने चार प्रत्याशी उतारे जिनमें से एक भी जीत नहीं पाया लेकिन इसके बावजूद भी देखना होगा कि अपनी नई भूमिका से वे बिहार के मतदाताओं को कितना प्रभावित कर पाए हैं। वे स्वयं एक चुनावी रणनीतिकार हैं और 2014 में मोदी के साथ तथा 2015 में नीतीश के साथ उनकी रणनीति ने काफी प्रभावित किया था। यही नहीं वे एक समय नीतीश की पार्टी जदयू के उपाध्यक्ष भी रहे हैं, अब अपनी पार्टी को किस तरह प्रसांगिक बना पाएंगे देखने वाली बात होगी। उनका हमला भी फिलहाल तो नीतीश पर ही ज्यादा फोकस दिखाई देता है। उनके अनुसार कुछ भी हो जाए नीतीश कुमार अगले मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे। निश्चित ही यह एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का प्रयत्न है। यही नहीं वे यह भी कहते हैं कि जल्दी ही नीतीश पाला बदलने वाले हैं। जो भी हो चुनावी बयानों में ऐसी सब बातें रणनीति का हिस्सा हुआ करती हैं। वैसे यह भी एक सच्चाई है कि नीतीश कुमार के बारे में तब तक कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती जब तक कि वे कोई स्पष्ट बयान नहीं दे देते। हालांकि उनके बयानों की यह विशेषता रहती है कि कोई भी उनके अगले कदम का अंदाजा नहीं लगा सकता। प्रशांत किशोर की पार्टी कोई बड़ा उलट फेर कर पाएगी ऐसा लगता तो नहीं किंतु उनकी बिहार की यात्रा और बिहार के छात्र आंदोलनों की आवाज बनने ने उन्हें एक चुनावी प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित जरूर किया है। यदि वह थोड़ा भी अच्छा परिणाम दे पाए तो स्थितियां बदल सकती हैं। निश्चित ही प्रशांत किशोर सरकार बनाने में किंग मेकर की भूमिका की आस लगाकर मैदान में उतरेंगे लेकिन आज की स्थितियों में बिहार एनडीए के सभी घटक चाहे वह नीतीश की जदयू हो या चिराग की लोजपा हो या उपेंद्र कुशवाह की राष्ट्रीय लोक मोर्चा हो या जीतन राम मांझी की हम पार्टी हो या भाजपा सभी एकजुट होकर मजबूती से विपक्ष के महागठबंधन को चुनौती देने के लिए तैयार हैं। निश्चित ही बिहार के इस बार के चुनाव बहुत कशमकश के होंगे क्योंकि राजद के तेजस्वी यादव सत्ता प्राप्त करने के लिए हर संभव कोशिश करने को आतुर हैं।

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डॉ हरिकृष्ण बड़ोदिया

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