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ये नारी का जीवन….

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रचना शर्मा

ये नारी का जीवन है,
कहां किसी को रास आता है।
थोड़ा खुलकर जीना चाहे,
तो उसके अपनों को ही नहीं भाता है।
बाहर आगे बढ़ना चाहे,
तो उसका सहकर्मी ही टांग अड़ाता है।

थोड़ा सज संवर ले,
तो तेज बताते हैं।
ना संवरे,
तो बहनजी कहकर चिढ़ाते हैं।
लोग भी बड़े अजीब हैं,
हरदम नारी में ही कमी बताते हैं।

मन बड़ा व्यथित हो जाता है,
जमाने की इन बेतुकी दलीलों से।
नारी को बुरा बताने बाली,
इन तस्वीरों से।

पर सुन लो,ऐ!समाज के ठेकेदारों,
मैं आज की नारी हूं,
नहीं किसी से हार मानने बाली हूं।
जमाने से कदम से कदम मिलाऊंगी,
मैं भी तुमसे इतना ना घबराऊंगी।
बताऊंगी जमाने को नारी बड़ी अनमोल है,
उसे तुम्हारी दया का नहीं कोई मोह है।

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