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कुंडलिनी जागरण द्वारा आश्चर्यजनक लाभ प्रदान करता है सहजयोग ध्यान

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सहजयोग ध्यान, कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति की एक सनातन, वैज्ञानिक व प्रमाणिक पद्धति है जिसकी जटिलताओं को परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी जी ने अत्यंत सहज बना दिया है।
श्री माताजी ने कुंडलिनी जागरण द्वारा साधकों को होने वाले लाभ का वर्णन अपनी पुस्तक ‘परा आधुनिक युग’ में इस प्रकार किया है –
“कुण्डलिनी जागृति के परिणाम स्वरूप आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति ने आश्चर्यजनक परिणाम दर्शाए हैं। यह नई सृजनात्मक शक्ति प्रदान करता है। बहुत से लोग कवि, संगीतकार तथा कलाकार बन गए हैं और अपनी-अपनी प्रतिभाओं में महान बुलन्दियाँ प्राप्त कर ली हैं। आर्थिक समस्याएं दूर हो गई हैं, मनौदेहिक रोगों जैसे कैंसर, मेरुरज्जुशोथ (myelitis रीढ़ की हड्डी का रोग) से मुक्ति मिल गई है। बिना दवाइयों के बहुत से असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। साधक जीवनरूपी नाटक का साक्षी बन जाता है और उसमें आन्तरिक शान्ति स्थापित हो जाती है। वह सभी धर्मों का सम्मान करता है तथा अन्तर्जात शाश्वत धर्म से जुड़ जाता है, ऐसे धर्म से जो विश्व के सभी धर्मों का समावेश अपने में किए हुए हैं। सचरित्र उनमें अन्तर्जात तथा स्वैच्छिक हो जाता है। पूर्णपरिवर्तन के पश्चात् वह अनैतिक कार्यों के विरुद्ध हो जाता है। आत्मा के प्रकाश में वह उचित-अनुचित को भलीभांति जान जाता है तथा सभी विनाशकारी चीज़ों को त्यागने के कारण स्वच्छ एवं पावन बने रहने की शक्ति उसमें आ जाती है। बिना किसी सन्देह जिन सद्गुणों का वह सम्मान करता है उनका वह आनन्द उठाता है तथा चरित्रवान मानव बन जाता है। मस्तिष्क से परे, उसे पहले निर्विचारचेतना प्राप्त हो जाती है और तत्पश्चात् निर्विकल्पचेतना । इस अवस्था पर पहुँचकर सहजयोगी अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्रदान कर सकता है। उस पर बुढ़ापे का असर नहीं होता, इसके विपरीत सहजयोगी अपनी आयु से कम से कम बीस वर्ष युवा प्रतीत होता है तथा युवा हो जाता है। वे सार्वभौमिक व्यक्ति बन जाते हैं। वासना, लोभ, क्रोध, स्वामित्वभाव, ईर्ष्या और मोह आदि मानवशत्रु, लुप्त हो जाते हैं। इस प्रकार सन्तों की एक नई प्रजाति का सृजन होता है जिन्हें अपनी निर्लिप्सा या सन्यास का प्रदर्शन करने के लिए किसी भी चीज का त्याग नहीं करना पड़ता।”

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