युवाओं को अच्छी धर्म प्रभावना और साधु का आदर सत्कार करना चाहिए : आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज
राजेश जैन दद्दू
नांदणी में चातुर्मासिक धर्मसभा में श्रमण संस्कृती के महनीय संतो में अग्रणी संत,देश के सर्वश्रेष्ठ आगम अनुकूल चर्या शिरोमणी आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज जी ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि – सागर की गहराई और पर्वत की ऊंचाई जगत प्रसिद्ध है पर इन से भी गहरा और ऊंचा कोई है तो वह गुरु का धर्म उपदेश होता है। गुरु के वचन आत्मा को परमात्मा के पास पहुंचाने के साधन है।
भगवान महावीर की मुद्रा ही नग्न मुनियों की मुद्रा है। गुरु भक्ति की महिमा अपरंपार है। जैन समाज के लोगों ने जैन धर्म को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा धर्म का अनुसरण किया है। श्रुत अभ्यास और आगम का ज्ञान जरूरी है।
चर्या शिरोमणी आचार्य विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा की सभी युवाओं को अच्छी धर्म प्रभावना और साधु का आदर सत्कार करना चाहिए।
“जो दूसरों से छल करते हैं, जो दूसरों को धोखा देते हैं, जो दूसरों को गिराने के लिए गड्ढा खोदते हैं, वे एक दिन स्वयं ही उस गड्ढे में गिर जाते हैं।” यदि तुम शांति चाहते हो, तो दूसरों को भी शांति से जीने दो। आप दूसरों से सम्मान चाहते हो, तो सभी का सम्मान करो।
सज्जन मानव ही सज्जनता से जीता है, दुर्जन उपदेश सुनकर भी सरलता पूर्वक जीवन नहीं जीता है। धर्म का उपदेश, हितकारी गुरुओं की वाणी वही श्रद्धापूर्वक सुन सकता है, जिसकी भवावलियाँ अल्प हैं। सोते हुए को पानी के छींटे मारकर जगाया जा सकता है, परन्तु सोने का नाटक करने वाले मानव को नहीं जगाया जा सकता है।
शत्रुता से समता श्रेष्ठ है। वाचालता से मौन श्रेष्ठ है। ढोंग से ढंग का जीवन श्रेष्ठ है। संग्राम से समझौता श्रेष्ठ है। दान से दया श्रेष्ठ है। कलह से करुणा उत्तम है।
दूसरों को झुकाना चाहते हो, तो तुम स्वयं झुकना सीखो। कुछ पाना है, तो देना सीखो। जो झुक जाता है, वह उठ जाता है। गगन-सी ऊँचाईयाँ चाहिए, तो नम्रता सीखो। मधुर भाषण, विनयशीलता, उच्च- कुलीन मानवों की कुल-विद्या है।
पाप मत करो, क्योंकि तुम पाप भूल सकते हो, परन्तु पाप का फल तुम्हे नहीं छोड़ेंगें। जैसे भाव करोगे, वैसा फल प्राप्त होगा। जैसे परिणाम करोगे, वैसी भविष्य की पर्याय प्राप्त होगी। पापों से बचो, पुण्य- कार्य करो। शांति से जियो | दुनिया को शांति से जीने दो । कर्तापन छोड़ो, समता पूर्वक जिंदगी जियो।