माधुर्य, साक्षी भाव तथा प्रेम की उत्पत्ति का केंद्र है विशुद्धि चक्र
पाँचवाँ चक्र विशुद्धि चक्र के नाम से जाना जाता है। मनुष्य की गर्दन में इसकी रचना है, इसमें सोलह पंखुड़ियाँ होती है जो कान, नाक, गला जिव्हा तथा दाँतो आदि की देखभाल करती है। दूसरों से सम्पर्क स्थापित करने का दायित्व भी इसी चक्र का है क्योंकि अपनी आँखें, नाक, कान, वाणी तथा हाथों के द्वारा हम दूसरों से सम्पर्क करते हैं। शारीरिक स्तर पर यह चक्र ग्रीवा केन्द्र के लिये कार्य करता है।
(सहजयोग)
विशुद्धि चक्र के नियंत्रक देवता श्री कृष्ण, श्री राधा तथा श्री विष्णु माया हैं। इनकी जागृति हमें माधुर्य, साक्षी स्वरूप तथा सत्य के प्रति सजगता का भाव प्रदान करती है।
विशुद्धि उन गुणों को दर्शाती है जो दूसरों के साथ हमारे संचार को नियंत्रित करते हैं। जैसे-जैसे यह जागृत होता है, हम अधिक आत्म-सम्मान (बाएं विशुद्धि) और दूसरों के लिए अधिक सम्मान (दाएं विशुद्धि) पाते हैं। प्रशंसा से हमारा अहंकार फलता नहीं है और हम आक्रामकता या आलोचना से परेशान नहीं होते। विशुद्धि चक्र ही वह चक्र है जो साक्षी होने की शक्ति को प्रकट करता है। सहज ध्यान के दैनिक अभ्यास से हम अपनी आत्मा के साथ एकाकार हो जाते हैं। अपनी आत्मा के साथ एकता की इस अवस्था में हम अपने शरीर, अपने मन, अपने विचारों, अपनी भावनाओं और अंततः अपने जीवन के नाटक के साक्षी बन जाते हैं।
विशुद्धि चक्र के लाभ
यह हमें संवाद करने की अनुमति देता है आकर्षक व्यक्तित्व निर्माण होता है पांचों इंद्रियों को सक्षम बनाता है, हंसा चक्र को नियंत्रित करता है इस चक्र के द्वारा एकता का अनुभव होता है।
विशुद्धि चक्र में असंतुलन से व्यक्ति में सामूहिकता की भावना में कमी आती है गले से संबंधित रोग, फ्लू, आवाज़ का खो जाना अवसाद, सरवाइकल कैंसर, पाँच इंद्रियों की समस्याएँ, स्पांडिलाटिस, एंजाइना आदि की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।इस चक्र की पुष्टि के लिए गुनगुने पानी व नमक के गरारे करना, अजवायन और तुलसी का प्रयोग करना, मुंह, दांत तथा जीभ की प्रतिदिन सफाई करना, कुछ मात्रा में मक्खन का प्रयोग करना आदि उपाय करने चाहिए। साथ ही दूसरों से मीठा बोलने का गुण विकसित करें। खाने के स्वाद पर कम ध्यान दें। सहजयोग में नियमित ध्यान के साथ श्री माताजी के समक्ष प्रार्थना करने से भी हमारा विशुद्धि चक्र सुदृढ़ व संतुलित होता है। मां के समक्ष विनती करें,”माँ, मैं बिल्कुल भी दोषी नहीं हूँ।” “माँ, मुझे साक्षी बनाओ, कृपया मुझे समग्र का हिस्सा बनाओ।” “माँ, कृपया मेरी सारी आक्रामकता और प्रभुत्व को दूर भगाओ।” “माँ, मुझे एक मधुर आवाज़ दो, और मुझे एक मधुर सामूहिक व्यक्ति बनाओ। सभी को माफ़ करो और अपने गुस्से को शांत करो। लोगों के साथ बहस मत करो या लोगों को अपने दृष्टिकोण के बारे में समझाने में बहुत समय बर्बाद मत करो।