अहम् ब्रह्मास्मि के सत्य को सहज योग द्वारा सरलता से अनुभव किया जा सकता है
अहम् ब्रह्मास्मि बृहदारण्यक उपनिषद के प्रथम अध्याय के चौथे काण्ड का 10वां मंत्र है।
प्रश्न यह है कि क्या आमजन के लिए आत्मा का साक्षात्कार व परब्रह्म का अनुभव संभव है ? आमधारणा के अनुसार यह विषय योगियों व संन्यासियों के धर्म का है। भारतीय संस्कृति ऐसे उदाहरणों से भरी पड़ी है जिन्होंने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया और विशिष्ट हो गए। ध्रुव, प्रहलाद, रैदास, मीरा, कबीर, सूर, तुलसी, रहीम, रसखान, नामदेव, एकनाथ सदृश अनेक नाम गिनाए जा सकते हैं।
आधुनिक समय में सहजयोग की प्रतिस्थापना द्वारा श्री माताजी निर्मला देवी जी ने आत्मसाक्षात्कार का मार्ग सभी सत्य के साधकों के लिए प्रशस्त कर दिया है। अहम ब्रह्मास्मि की ज्योति श्री माताजी ने पूरे विश्व में लाखों साधकों के भीतर प्रकाशित की है। और इस प्रकाश में साधारण मनुष्य योगी स्वरूप हो आनंद व शांति का अनुभव प्राप्त करते हुए सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। परम से एकाकारिता में हम संसार की नश्वरता के प्रति साक्षी स्वरूप हो जाते हैं और समस्त व्याधियां स्वयं ही समाप्त हो जाती हैं तब हम प्रतिपल ब्रह्म की चेतना का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। यह अनुभव श्री माता जी की कृपा में सहज योग में सहज ही प्राप्त हो जाता है।