मोदी सरकार के दस साल और 100 दिन : जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत सही मायने में रमन प्रभाव दिखाने के युग में है, अर्थात भारत विज्ञान के माध्यम से प्रगति करेगा
राजकुमार जैन : कृत्रिम मेधा एवं तकनीकी विशेषज्ञ
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का प्रारंभ से ही दृढ़ विश्वास रहा है कि विज्ञान और तकनीक के दम पर ही भारत एक वैश्विक महाशक्ति बन सकता है। इसीलिए शुरुआती दौर में उन्होंने नारा दिया था “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान”, लेकिन विज्ञान अनुसंधान के बिना अधूरा है तो मोदी जी ने “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान” को सूत्र वाक्य के रूप में अपनाया।
इस ध्येय वाक्य के तले चलते हुए भारत की जैव-अर्थव्यवस्था पिछले 10 वर्षों में 13 गुना बढ़कर 2014 में 10 बिलियन डॉलर के स्तर से ऊपर उठकर 2024 में 130 बिलियन डॉलर से अधिक हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी के चमत्कारिक मंत्र “सबके साथ सबका विकास” के तहत विकसित हुए सुदृढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र की बदौलत कृत्रिम बुद्धिमत्ता, खगोल विज्ञान, सौर एवं पवन ऊर्जा, सेमीकंडक्टर, जलवायु अनुसंधान, अंतरिक्ष अनुसंधान और जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भारत ने बेमिसाल मजबूती हासिल की है। आज भारतीय वैज्ञानिक उपलब्धियां प्रयोगशाला से निकलकर चंद्रमा तक पहुंच गई हैं। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के साथ ही भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। आज दुनिया भारत की तकनीकी दक्षता का लोहा मानती है।
नोबेल पुरस्कार विजेता प्रख्यात वैज्ञानिक डा. सी.वी. रमन का मानना था कि कोई भी देश केवल विज्ञान, अधिक विज्ञान और और भी अधिक विज्ञान के माध्यम से ही प्रगति की सीढ़ी की पहली पायदान तक पहुँच विकास और प्रभुत्व का आसमान छू सकता है। नरेन्द्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद भारत वास्तव में “रमन प्रभाव” के अधीन हुआ है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी विज्ञान और अनुसंधान को अत्यंत उच्च प्राथमिकता देते हैं और दोहराते रहते हैं कि विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का स्वदेशी विकास अनिवार्य है।
2014 में आई मोदी सरकार के पहले पहल के दो बड़े कदम देश में जीएसटी लागू करना और स्वच्छ भारत अभियान थे जो उच्च कोटी की सूचना प्रोद्योगिकी के उपयोग के बगैर धरातल पर सफल हो ही नहीं सकते थे। इसी तरह “डिजिटल इंडिया” मोदी सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलना है जिसके चलते डिजिटल ट्रांजेक्शन में आशातीत वृद्धि हुई। 2016-17 में 1013 करोड़ रुपए का डिजिटल ट्रांजेक्शन हुआ था, जो 2018-19 में 3133.58 करोड़ रुपए तक पहुँच गया। जीएसटी लागू करने के बाद टैक्स की विसंगति दूर हुई और पूरे देश में सामान और सेवाओं पर एक-सा टैक्स लगाने लगा। किसी भी व्यापक बदलाव की तरह जीएसटी को भी अपनाने में कुछ शुरुआती दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पर धीरे-धीरे यह प्रक्रिया सुगम होती चली गई है। बीते वित्तीय वर्ष में 20.18 लाख करोड़ रुपये जीएसटी के मद में हासिल हुए हैं कर संग्रहण का यह विशाल आंकड़ा इस हैरतअंगेज सफलता की कहानी स्वयं कहता है।
मोदी सरकार के प्रथम दौर में तकनीकी अनुसंधान के क्षेत्र में विकास के चलते भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष रैंकिंग वाले देशों में शामिल हुआ। वैश्विक अनुसंधान एवं विकास खर्च में भारत की हिस्सेदारी पहले से बढ़कर में 3.90% हो गई जिसके चलते विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी देशों में भारत सातवें स्थान पर पहुंचा। मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी के लिये प्रत्युष नामक शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर बनाकर भारत इस क्षेत्र में जापान, ब्रिटेन और अमेरिका के बाद चौथा प्रमुख देश बना। नैनो तकनीक पर शोध के मामले में भारत दुनियाभर में तीसरे स्थान पर आया। वैश्विक नवाचार सूचकांक (ग्लोबल इनोवैशन इंडेक्स) में 2014 के 74वे स्थान से ऊपर उठकर 2019 में हम 52वें स्थान पर पहुंचे। देश में आए सकारात्मक माहौल के चलते ब्रेन ड्रेन से हम ब्रेन गेन की स्थिति में पहुंचे और विदेशों में काम करने वाले भारतीय वैज्ञानिक स्वदेश लौटने लगे। तेजी से उभर रहे वैश्विक अनुसंधान एवं विकास हब के रूप में मल्टी-नेशनल कॉर्पोरशन रिसर्च एंड डेवलपमेंट केंद्रों की संख्या 1200 से अधिक हो गई। 2018 में राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति बनाई गई जिसमें इस क्षेत्र के लिये वर्ष 2022 तक 100 बिलियन डॉलर के निवेश का लक्ष्य निर्धारित किया। साथ ही इस क्षेत्र में 4 मिलियन रोज़गार सृजित करने का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया।
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की विशिष्ट उपलब्धियों में साइबर भौतिक प्रणाली (एनएम-आईसीपीएस) पर राष्ट्रीय मिशन के तहत उन्नत प्रौद्योगिकियों के क्षेत्रों में 25 प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र (टीआईएच) स्थापित किए गए जो 4 प्रमुख श्रेणियों अर्थात प्रौद्योगिकी विकास, मानव संसाधन विकास, उद्यमिता विकास और औद्योगिक सहयोग के तहत अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। वर्ष 2022 के दौरान इस योजना के तहत कुल 192 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए और लगभग 8,573 शोधकर्ताओं को वैज्ञानिक और तकनीकी बुनियादी ढांचे का उपयोग करते हुए सहक्रियात्मक प्रशिक्षण कार्यक्रम (एसटीयूटीआई) के तहत प्रशिक्षित किया गया है। मिशन ने दिसंबर 2023 तक 311 प्रौद्योगिकियां, 549 प्रौद्योगिकी उत्पाद, 63000 से अधिक मानव संसाधन, 1200 रोजगार सृजन और लगभग 124 अंतर्राष्ट्रीय सहयोग विकसित किए हैं।
वैज्ञानिक प्रगति को आगे बढ़ाने में सक्षम वैज्ञानिक नेतृत्व द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका की महत्ता को पहचानते हुए नेशनल सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस (एनसीजीजी) और भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) ने आपस में हाथ मिलाकर ‘एनसीजीजी – आईएनएसए लीडरशिप प्रोग्राम इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (लीड्स)’ शुरू किया है। इस संयुक्त पहल का उद्देश्य तेजी से विकसित हो रहे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्वदेशी परिदृश्य को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक उपकरणों और क्षमताओं को अर्जित करना है।
मोदी सरकार की नीतीयों के फलस्वरूप तकनीकी विकास के क्षेत्र में देश में बने अनुकूल और सुविधाजनक माहौल के चलते उद्यम और विकास इक्विटी निवेश फर्म नॉरवेस्ट वेंचर पार्टनर्स अमेरीका ने भारतीय सॉफ्टवेयर-एज-ए-सर्विस फर्म सेलेबल टेक्नोलॉजीज में 32 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने पर सहमति व्यक्त की, जो अन्य तकनीकों के अलावा एआई, बिग डेटा और एंटरप्राइज़ क्लाउड में विशेषज्ञता रखती है। डिजिटल सेवाओं और समाधानों के प्रदाता कोफोर्ज द्वारा भारत में मेटावर्स और वेब3 प्रौद्योगिकियों के लिए उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) खोला गया। कंपनी द्वारा 1,000 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित और कुशल बनाया जाएगा। सैमसंग ने घोषणा की कि वह भारत के 70 इंजीनियरिंग कॉलेजों में अपने उद्योग-अकादमिक कार्यक्रम प्रिज्म का विस्तार कर रहा है। यह कार्यक्रम छात्रों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और आइओटी के क्षेत्र में शिक्षित करने में मदद करेगा। देश में बने निवेश के माहौल को देखते हुए प्रौद्योगिकी इनक्यूबेटर “टी-हब” ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र के स्टार्टअप्स में नवाचार और उद्यमिता को विकसित करने के लिए एआईसी टी-हब सेमीकंडक्टर प्रोग्राम लॉन्च किया जिसका उद्देश्य भारत में एक सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाना है । अक्टूबर 2021 में, फिनटेक कंपनी बिज़2क्रेडिट ने अनुसंधान और विकास गतिविधियों और विस्तार में अगले पांच वर्षों में भारत में 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की योजना की घोषणा की। इन सब कार्यक्रमों के चलते रोजगार क्षेत्र में आशातीत वृद्धि देखी गई, भारत की शीर्ष 5 आईटी फर्मों (टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल और टेक महिंद्रा) ने वित्त वर्ष 22 के पहले छह महीनों में 122,000 से अधिक नवीन कर्मचारियों को अपने साथ जोड़ा। अपने दूसरे कार्यकाल के अंत में सरकार ने राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एनआरएफ) विधेयक पेश किया, जो भारत को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र बनाने के पथ पर ले जाता है।
जैव-अर्थव्यवस्था, सामुद्रिक नीली-अर्थव्यवस्था, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में नवाचार और उत्कृष्टता पर ध्यान केंद्रित रखना एक शक्तिशाली देश की प्राथमिकताओं में शामिल होना चाहिए। तेजी से बदलती इस दुनिया में सेमीकंडक्टर और एआई वैश्विक प्रभुत्व के प्रदर्शन के नए अस्त्र हैं। मोदी 3.0 के पहले 100 दिनों में विज्ञान एवं तकनीकी विकास और अनुसंधान के तीव्र गतिमान पथ पर मिल रहे संकेतों के अनुसार टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स ताइवान की पॉवरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्प के साथ मिलकर गुजरात में 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर (91,000 करोड़ रुपये) की सेमीकंडक्टर इकाई स्थापित करेगी, जिससे 20,000 कुशल नौकरियाँ पैदा होंगी। इसके अतिरिक्त, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड ने दो बड़े अमेरिकी समूहों के साथ मिलकर असम में ₹27,000 करोड़ की सेमीकंडक्टर असेंबली और परीक्षण सुविधा का निर्माण शुरू कर दिया है। इस सेमीकंडक्टर प्लांट में हर दिन 4.83 करोड़ सेमीकंडक्टर चिप्स का प्रोडक्शन होगा। इसके 2025 तक चालू होने की उम्मीद है। जिससे 27,000 नौकरियाँ पैदा होंगी। भारत की सीजी पावर एंड इंडस्ट्रियल सॉल्यूशंस, जापान की रेनेसास और थाईलैंड की स्टार्स माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स, संयुक्त रूप से गुजरात में 7,600 करोड़ रुपये के निवेश से एक सेमीकंडक्टर इकाई स्थापित करेगी। 2021 में भारतीय सेमीकंडक्टर मार्केट की वैल्यू 27.2 बिलियन डॉलर थी। संयुक्त उद्यम भागीदारों की विलक्षण क्षमताओं को साथ लाता है इसी भावना के साथ आगे बढ़ते हुए सालाना 19% की वृद्धि दर के साथ 2026 तक इसके 64 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है। जो भारत को वैश्विक पटल पर एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा।
सेमीकंडक्टर के अलावा शक्ति के दूसरे केंद्र एआइ यानि कृत्रिम मेधा के क्षेत्र में हुकूमत जमाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए मोदी मंत्रिमंडल ने मार्च में एक बहूद्देशीय और अति महत्वाकांक्षी परियोजना “इंडियाएआई” मिशन के परिचालन के लिए 10,372 करोड़ रुपये की मंजूरी प्रदान की है। इस मिशन का उद्देश्य डेटा की गुणवत्ता को बढ़ाना और स्वदेशी एआई प्रणालियों के विकास और परीक्षण के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए भारत में एक मजबूत एआई कंप्यूटिंग बुनियादी ढांचा स्थापित करना है। यह परियोजना शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने, उद्योग सहयोग को बढ़ावा देने, प्रभावशाली एआई स्टार्टअप का समर्थन करने और नैतिक एआई प्रथाओं को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक उच्च क्षमता वाले ग्राफिक प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) की खरीद सहित एआई बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को 551.75 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। जिसका उद्देश्य 10,000 से अधिक जीपीयू की कंप्यूटिंग क्षमता स्थापित करना और स्वास्थ्य सेवा, कृषि और शासन जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए प्रमुख भारतीय भाषाओं में कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने वाले डेटासेट पर प्रशिक्षित 100 बिलियन से अधिक मापदंडों की क्षमता वाले आधारभूत मॉडल विकसित करना है। प्रारंभिक प्रयासों में परियोजना को शुरू करने के लिए 300 से 500 जीपीयू की खरीदी हेतु निविदाए आमंत्रित की जा रही है। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में स्वदेशी एआइ की उन्नति के लिए आवश्यक मल्टीमॉडल लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एमएलएमएम) और आधारभूत मॉडल के विकास के लिए इंडियाएआई इनोवेशन सेंटर खोलने के लिए करीब 2,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं। नई तकनीक को बढ़ावा देने के लिए स्टार्टअप्स और शोधकर्ताओं के महत्व को समझते हुए सरकार ने उच्च गुणवत्ता वाले गैर-व्यक्तिगत डेटासेट तक निर्बाध पहुंच प्रदान करने के लिए इंडियाएआई डेटासेट प्लेटफॉर्म के रूप में एक एकीकृत मंच उपलब्ध करवाने की पहल की है। बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाने के लिए सरकारी कामकाज में एआइ एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में काम करता है, विभिन्न सरकारी क्षेत्रों में आ रही समस्या विवरणों को लक्षित करते हुए एआई अनुप्रयोगों को बढ़ावा देने के लिए “इंडियाएआई अनुप्रयोग” उपक्रम बनाया जा रहा है इन सब लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रशिक्षित मानव संसाधनों की आपूर्ति हेतु स्नातक, परास्नातक और पीएचडी कार्यक्रमों के माध्यम से एआई शिक्षा का विस्तार के साथ डेटा और एआई लैब्स की स्थापना हेतु इंडियाएआई फ्यूचरस्किल्स विकास को इंडिया एआइ के विशिष्ट घटक के रूप में जोड़ा गया है। इन सभी घटकों और इनके तहत आने वाली नवीन परियोजनाओं को आवश्यक वित्तीय समर्थन देने के लिए इंडियाएआई स्टार्टअप वित्तपोषण के माध्यम से सुव्यवस्थित वित्तपोषण पहुंच का प्रावधान भी रखा गया है। इस उद्देश्य के लिए प्राथमिक तौर पर 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
एआइ के बढ़ते उपयोग को सुरक्षित एवं विश्वसनीय बनाए रखने और जिम्मेदार एआई प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देशों और रूपरेखाओं का विकास जरूरी है। इसके साथ ही एआई-संचालित धोखाधड़ी का पता लगाने और जोखिम मूल्यांकन के लिए अगले 5 सालों में 5,000 साइबर कमांडो को प्रशिक्षित किया जाएगा। साइबर अपराधों की रिपोर्टिंग के लिए साइबरदोस्त मोबाइल ऐप लॉन्च किया गया है। बैंकों और वित्तीय मध्यस्थों के सहयोग से I4C में एक उन्नत ‘साइबर धोखाधड़ी शमन केंद्र’ की स्थापना भी की गई है।