जन्माष्टमी पर विशेष: सूरदास ने श्रीकृष्ण को ऐसा रचा कि कवियों की पांति में चांद से चमक गए
हिंदू देवताओं की परंपरा में श्रीकृष्ण ऐसे देवता हैं, जिन्हें बहुत सारे रूपों में रचा-सजाया और पूजा जाता है. कोई लड्डू गोपाल, तो कोई राधे रानी के प्रिय के तौर पर मानता – पूजता है. गीता के उपदेश का अनुशीलन करने वाले उन्हें जगदगुरु के तौर पर देखते और मानते हैं. सूरदास ने श्रीकृष्ण को ऐसा रचा कि कवियों की पांति में चांद से चमक गए. सूर के अलावा अष्टछाप के बाकी सात कवियों की व्याख्या भी अद्भुत है. कबीर ने ‘गोविंद’ कह, उन्हें गाया है. राजरानी मीरा तो पद रचते-रचते खुद ही कृष्ण की पटरानी बन गईं. श्रीकृष्ण के विग्रह में समाहित हो जाने वाले चैतन्यमहाप्रभु ने हरे कृष्णा का ऐसा गान किया कि आज तक उसकी गूंज भौगोलिक सीमाएं तोड़ दुनिया भर में सुनाई देती है. यहां तक कि इस्लाम के अनुनाई सैय्यद इब्राहिम, रसखान बन कर कृष्ण की भक्ति में खुद डूबे और पढ़ने वालों को सराबोर कर दिया. युद्ध में तलावार चलाने वाले अब्दुल रहीम खानेखाना की कृष्ण भक्ति लाजवाब है. कृष्ण पर काजी नजरुल इस्लाम की रचनाएं भी मोहक हैं. कृष्ण काव्यधारा कुछ ऐसी प्रवाहशील है कि आज भी बहुत सारे रचनाकार अपनी अपनी रुचि और दृष्टि से श्रीकृष्ण को रच और गा रहे हैं.
सबसे पुरानी और अनुपम होने का दर्जा श्रीमद्भगवद् गीता को
इन तामाम रचनाओं में सबसे पुरानी और अनुपम होने का दर्जा श्रीमद्भगवद् गीता को है. इसे ही गीता के नाम से जाना जाता है. इस पर एकेडेमिक हलकों में भी खूब सारा शोध और विचार-विमर्श हुआ है. भारत के अलावा दुनिया के और हिस्सों में भी हिंदू धर्म की चर्चा होने पर गीता का न सिर्फ जिक्र किया जाता है, बल्कि बाकायादा एकेडेमिक शोध भी होते रहे हैं. ‘महाभारत’ या ‘जय’ नाम के ग्रंथ से ली गई इस रचना को व्यावहारिकता के निकट मान कर दर्शन के स्तर पर भी खूब मंथन हुए हैं. अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग भाषाओं में संस्कृत मूल की इस रचना का अनुवाद और उसकी टीका रची है. कृष्ण के अपने स्वरूप की ही तरह गीता में भी रसिकों, विद्वानों और साधकों को अपने-अपने अर्थ मिले हैं.