Others

सोलह को सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहेगा चंद्रमा

Spread the love

मनोज जैन नायक

इस वर्ष मुख्य त्योहारों वाले दिन सुबह या शाम को तिथियों के बदलने से त्योहारों को किस दिन मनाए यह जनमानस में भ्रम बना हुआ है। अब शरद पूर्णिमा को लेकर भ्रम बना हुआ है, 16 को मनाए या 17 अक्टूबर को मनाएं । वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने कहा कि 16 अक्टूबर बुधवार को पूर्णिमा तिथि रात्रि 08:40 बजे से प्रारंभ होकर 17 अक्टूबर शाम को 04:55 बजे पर समाप्त हो जायेगी। ऐसी स्थिति में शरद पूर्णिमा व्रत 16 अक्टूबर बुधवार का रखा जाएगा चंद्रोदय शाम 05:02 बजे पर हो जायेगा । जैन ने कहा शरद पूर्णिमा सभी पूर्णिमाओं में एक ही ऐसी पूर्णिमा है जब चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर निकलता है सोलह कलाओं से आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण होता है। श्री कृष्ण जी को सोलह कलाओं से परिपूर्ण अवतार माना जाता है।
इसलिए आश्वनि शुक्ल पूर्णिमा को चंद्र देव की व्रत उपवास रख कर पूजा की जाती है जो नव विवाहिता पूर्णमासी का व्रत करने का संकल्प लेती है उन्हे इसी दिन से व्रत का आरंभ करना चाहिए।
इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ अपनी धवल किरणों द्वारा अमृत की वर्षा करता है जिससे व्यक्ति स्वस्थ्य,दीर्घायु रहता है इसी लिए इस रात्रि को गाय के दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की खुली रोशनी में मलमल के वस्त्र से ढक कर रखी जाती है इस मीठी खीर में चंद्रमा की किरणों से औषधि गुण आजाते है फिर प्रातः काल इस खीर का प्रसाद के रूप में सेवन किया जाता है।
ब्रज क्षेत्र में शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है इसी दिन श्री कृष्ण ने आध्यात्म /अलौकिक प्रेम का नृत्य प्रत्येक गोपियों के साथ किया था इस रात्रि को श्री कृष्ण जी ने आलौकिक रूप से ब्रह्मा की एक रात्रि के बराबर कर दिया था ।इस शरद पूर्णिमा को भारत के अलग अलग क्षेत्र में कोजागरा पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है और पूरे दिन व्रत/ उपवास रखा जाता है इस व्रत का अन्य नाम कौमुदी व्रत भी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *