सावन मास में रात – दिन पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री ताप्ती करती है बारह तपेश्वर ज्योर्तिलिंगो का जलाभिषेक
मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने बनवाए थे भगवान विश्वकर्मा की मदद से ताप्ती के तट पर ऊकेरे गए थे ज्योर्तिलिंग
बैतूल से रामकिशोर पंवार की रिपोर्ट
बैतूल, 24 प्रकल्पो में धरती पर अवतरित पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के किनारे चौदह वर्ष का वनवास काटते समय मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम अपनी जीवन संगनी माता सीता एवं भाई लक्ष्मण के संग कार्तिक माह की पूर्णिमा पर 3 दिनो के लिए रूके थे। श्री लंका जाते समय चित्रकूट में अपने पिता दशरथ की मृत्यु उपरांत भगवान श्री राम ने अपने सूर्यवंशी मे जन्मी मां सूर्यपुत्री ताप्ती के पावन तट पर अपने पितरो एवं पूर्वजो के साथ – साथ अपने पिता राजा दशरथ का भी तर्पण किया था। माता सीता ने जिस किनारे स्नान किया था वह आज भी मौजूद है। ताप्ती नदी के किनारे अपने अराध्य भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना के लिए उन्होने भगवान विश्वकर्मा की मदद से उनकी ऊंगली से बारह ज्योर्तिलिंगो की आकृति बना कर उन्हे प्राण प्रतिष्ठित किया। ताप्ती नदी के किनारे बने इन बारह ज्योर्तिंलिंगो तापी का नाम देते हुए तपेश्वर नाम दिया गया। यूं तो बैतूल जिले में भूतभावन भगवान भोलेनाथ की साधना और आराधना के लिए अनेक स्थान मौजूद है लेकिन सावन मास में महत्वपूर्ण स्थान होता है तपेश्वर बारह ज्योर्तिलिंग जहां पर पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री ताप्ती रात दिन पूरे सावन मास में भगवान भोलेनाथ के बारह ज्योर्तिलिंगो का जलाभिषेक करती है। ताप्ती के जलाभिषेक को देखने के लिए भोले भक्तदूर दूर की यात्रा करके यहां पर आते है। भगवान चन्द्रमौली देवाधिदेव महादेव की पूजा अर्चना कर पुण्य लाभ प्राप्त करते है । वही बैतूल जिले की इतिहास में भी प्राचीन महत्व के अनेक स्थान मौजूद है। जहाँ चंद्रमौलि भगवान शिव के चमत्कारों और महत्व को लेकर भोलेनाथ में आस्था और विश्वाश और बढ़ जाता है। पुण्य सलिला आदि गंगा सूर्यपुत्री माँ ताप्ती के तट अनेक स्थानों पर भगवान भोले नाथ विराजित लेकिन ताप्ती नदी के आँचल में बारालिंग नामक स्थान जहाँ स्वयम्भू जनेऊ धारी शिव लिंग है। जहाँ सैकड़ो वर्ष पूर्व प्राचीन मंदिर था कहा जाता है। यह शिवलिंग और मंदिर रामायणकालीन है। इस स्थल से भगवान श्रीराम के रुके होने के प्रमाण भी मराठी ताप्ती पुराण में मिलते है। यह जनेऊधारीशिवलिंग उसी समय का है। जब प्रभु श्रीराम जानकी जी और लक्ष्मण समेत वनवास काल के दौरान यहाँ रुके थे । सकलकड़े महाराज जो की एकमीसाबंदीथे लेकिन उनके पास जो मराठी ताप्ती पुराण है उसमे ताप्ती तट भगवान राम के पदार्पण की कथा स्पष्ट लिखी हुई है। उन्होंने मराठी ताप्ती पुराण की एक लाइन हमे दिखलाई की बारालिंग येथे श्रीरामाने बारह शिवलीगाची स्थापना केलिली अत: भगवान श्री राम ने ताप्ती तट बारह शिवलिंग स्थापना की यह मंदिर अब बारालिंग पर नही है । वह चन्दोरा डेम की बाढ़ में बह गया लेकिन मंदिर के अवशेष के साथ वह जनेऊधारी शिवलिंग एवं काले पत्थरो पर अंकित बारह शिवलिंग और इतिहास यह दावा करता है कि भगवान राम के चरण माँ ताप्ती की इस धरा पर पड़े थे। लोग सावन मास में भी इस स्थल पर पूजा अर्चना करते है । इसका धार्मिक महत्व समझकर वन विभाग में पदस्थ खेडी निवासी लाड साहब जो कन्सर्वेटर थे उन्होंने तीस वर्ष पूर्व चट्टानों में बारह शिवलिंग बनवाई जो मानव निर्मितशिवलिंग है। यहॉ से प्रभु श्री राम जब गये तो दस किलोमीटर दूर सरभंग ऋषि के आश्रम में रुके जो बोरिकास गाँव के पास है।