अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में 12 घंटे में डबल-हैंड ट्रांसप्लांटेशन और मल्टी-ऑर्गन सर्जरी
पांच लोगों को मिली नई जिंदगी
अमृता हॉस्पिटल के सर्जनों ने 12 घंटे तक सर्जरी करके एक ऐतिहासिक सर्जरी को अंजाम दिया है। दरअसल फरीदाबाद स्थित अमृता हॉस्पिटल के सर्जनों ने एक मृत 76 वर्षीय महिला डोनर से पांच अंगों को सफलतापूर्वक निकाला और उन्हें पांच लोगों में ट्रांसप्लांट किया, जिससे पांच अलग-अलग लोगों को नया जीवन मिला। प्रक्रियाओं में एक डबल-हैंड ट्रांसप्लांट, एक किडनी ट्रांसप्लांट, कॉर्नियल ट्रांसप्लांट और लंग ट्रांसप्लांट किया गया। इस सफलता के साथ अमृता हॉस्पिटल उत्तर भारत में डबल-हैंड ट्रांसप्लांट करने वाला पहला हॉस्पिटल बन गया है।
पिछले ढाई सालों में तीन मरीजों पर किए गए पाँच सफल प्रक्रियाओं के साथ अपर लिंब ट्रांसप्लांटेशन (ऊपरी अंग प्रत्यारोपण) में अमृता हॉस्पिटल की एक्सपर्टीज लगातार बढ़ रही है। डॉक्टरों की इसी टीम ने भारत में पहली बार साल 2015 में केरल के कोच्चि में अपर लिंब ट्रांसप्लांटेशन प्रोग्राम शुरू किया था। अब वे उत्तर भारत में भी इसी तरह की मेडिकल सुविधाओं को बढ़ा रहे हैं। अब वे उत्तर भारत में एक लीडिंग रिकंस्ट्रक्टिव सर्जनों की टीम बन गए हैं।
यह ट्रांसप्लांट एक सेना अधिकारी की पत्नी के निस्वार्थ अंगदान के कारण संभव हो पाया। उनकी मौत इंट्राक्रेनियल ब्लीडिंग से हुई। इस स्थिति को ब्रेन हेमरेज भी कहा जाता है। उनके अंगदान के इस नेक काम की वजह से कई लोगों को लाभ मिला। उन्होंने अपनी किडनी, लीवर, कार्निया और उपरी अंगो को दान दिया था।
अमृता हॉस्पिटल के प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के एचओडी डॉ मोहित शर्मा ने बताया, “यह मल्टी-ऑर्गन ट्रांसप्लांट भारत के मेडिकल इतिहास में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। हैंड ट्रांसप्लांटेशन बहुत चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि इसमें कई कोशिकाओं के प्रकार शामिल होते हैं और त्वचा की बढ़ी हुई इम्यून प्रतिक्रिया के कारण हाई लेवल के इम्युनोसप्रेशन की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया की सफलता अमृता हॉस्पिटल की सबसे कॉम्प्लेक्स सर्जिकल चुनौतियों से निपटने की क्षमता को दर्शाती है। इसके अलावा इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि अमृता हॉस्पिटल की वजह से एक डोनर के जीवनदान से पांच अलग-अलग लोगों को नई जिंदगी मिली है। यह बात अमृता हॉस्पिटल को और ज्यादा काबिलेतारिफ बनाती है।”
एम्स ऋषिकेश की पीएचडी स्कॉलर ट्विंकल डोगरा ने अपनों अंगो को एक बिजली के तार की दुर्घटना में खो दिए थे। उन्होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे दूसरी ज़िंदगी मिलेगी, लेकिन इस ट्रांसप्लांट ने मुझे दूसरी ज़िंदगी दी है। 2015 में अमृता हॉस्पिटल के कोच्चि के पहले ऑर्गन ट्रांसप्लांट बारे में जानने के बाद मुझे उम्मीद की एक किरण दिखाई दी। मेरे हाथ को फिर से पहले जैसा बनाने के अलावा अमृता हॉस्पिटल के मेडिकल स्टाफ़ की जानकारी और प्रतिबद्धता ने मुझे भविष्य के लिए नई उम्मीद दी है। शुरुआती रिकवरी समस्याओं से निपटने से लेकर इंटेंसिव फिजिकल और आकुपेशनल ट्रीटमेंट प्राप्त करने तक के सफ़र में डॉक्टरों और रिहैबिलिटेशन टीम ने हर स्टेज में मेरी मदद की है। इस दौरान मुझे प्रेरित रखने में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट का बहुत ज्यादा सहयोग रहा। जैसे-जैसे मेरे हाथ की कार्यक्षमता में सुधार होता रहा, मैं ज्यादा आजाद और आशावादी महसूस करती रही। मैं इस तरह का जीवन देने के लिए डोनर, उनके परिवार और अमृता हॉस्पिटल की मेडिकल टीम का हमेशा आभारी रहूंगी।”
इस ऑपरेशन में नेफ्रोलॉजी, ओफ्थल्मोलॉजी और क्रिटिकल केयर की चार अलग-अलग सर्जिकल टीमें और एक्सपर्ट्स एक साथ आए। यह सहयोग कई एक्सपर्टीज की जरूरत वाली कॉम्प्लेक्स चिकित्सा प्रक्रियाओं की सटीकता और टीमों के सहयोग के लिए अमृता अस्पताल की क्षमता को दर्शाता है।
भले ही डोनर 76 वर्ष की थी, लेकिन गहन मेडिकल जांच में यह पाया गया उनके द्वारा दान किया गया हर अंग एकदम सही आकार में था। उम्र अंग दान के लिए बाधा नहीं होती है, इस केस में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सफलता इस बात का स्पष्ट उदहारण थी। इस केस की सफलता से कई बुजुर्ग लोग अंगदान जैसे नेक काम के लिए प्रेरित हो सकते हैं और दूसरों की ज़िन्दगी बदलने में योगदान दे सकते हैं।
अमेरिकी मेडिकल इंस्टीट्यूट्स के साथ साझेदारी और ट्रांसप्लांट टेक्नोलॉजी में प्रगति सहित कई रिसर्च प्रोजेक्ट्स के माध्यम से हॉस्पिटल मेडिकल साइंस की सीमाओं को आगे बढ़ाता रहता है। इसकी प्राथमिकताओं में लोकल इम्यूनोसप्रेसिव विधियों का विकास और वास्तविक समय में टैक्रोलिमस लेवल मॉनिटरिंग के लिए पॉइंट-ऑफ-केयर टूल्स का उपयोग शामिल है।

अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में 12 घंटे में डबल-हैंड ट्रांसप्लांटेशन और मल्टी-ऑर्गन सर्जरी