दुनियाभर में बड़े पैमाने पर लोग जोड़ों के दर्द से पीड़ित
दुनियाभर में बड़े पैमाने पर लोग जोड़ों के दर्द से पीड़ित रहते हैं. ऑस्ट्रेलिया में ही इनकी संख्या एक चौथाई आबादी के करीब है. वैज्ञानिकों ने अपने शोध के जरिए इस आम समझ को चुनौती दी है कि मौसम का असर इस दर्द पर होता है. उन्होंने कहा कि जोड़ों के दर्द को लेकर बहुत सी गलतफहमियां हैं और इसके इलाज के विकल्प बहुत कम हैं. एक बयान में शोधकर्ता प्रोफेसर मानुएला फरेरा ने कहा, “आमतौर पर लोग मानते हैं कि किसी खास मौसम में कमर, कूल्हे या जोड़ों के दर्द और गठिये के दर्द में वृद्धि हो जाती है. हमारा शोध इस समझ को चुनौती देता है और दिखाता है कि बारिश हो या धूप, मौसम का हमारे अधिकतर दर्दों से कोई संबंध नहीं है.” सिडनी के कोलिंग इंस्टिट्यूट की प्रोफेसर फरेरा और उनकी टीम ने मांसपेशियों और हड्डियों (मस्कोस्केलटल) के दर्द को लेकर अब तक हुए तमाम अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के डेटा का विश्लेषण किया. लगभग 15 हजार मरीजों के इस डेटा में दर्द के बढ़ने के 28 हजार से ज्यादा मामले शामिल थे. इनमें सबसे ज्यादा मामले घुटने या कूल्हे के गठिये के थे. उसके बाद कमर के निचले हिस्से का दर्द सबसे ज्यादा पाया गया.
वैज्ञानिकों ने पाया कि हवा के तापमान, नमी या दबाव में बदलाव या बारिश से दर्द में बढ़ने के मामलों में कोई बदलाव नहीं हुआ था. यानी ऐसा नहीं हुआ कि जब मौसम बदला तो मरीजों का दर्द के इलाज के लिए आना बढ़ गया या कम हो गया. उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ.जोड़ों या मांसपेशियों के दर्द का मौसम से संबंध होने पर खोज की गई. शोधकर्ता कहते हैं कि उनके नतीजे उस समझ को एक भ्रांति साबित करते हैं. साथ ही वे मरीजों को भी चेताते हैं कि मौसम के असर के इंतजार में अपने दर्द को नजरअंदाज ना करें.